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श्रीवीतरागाय नमः। घडू व्यकी आवस्यका व सिद्धि
- और जैन साहित्याका महत्वा ।
. rixxxoreलखनऊको महासभामें जैन साहित्य सभाके लिये
लेखक:- . . श्रीमान पं० मथुरादासजी-बनारस, पं० अजितकुमारजी स्त्री, पं० बुद्धिलालजी श्रावक, पं० बनवारीलालजी स्याद्वादी, और व्याकरणरत्न पं० सतीशचंद्रजी न्यायतीर्थ-काशी। .
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प्रकाशक:
मूलचन्द किसनदास कापड़िया, ___ मालिक, दिगम्बर जैन पुस्तकालय-चन्दाबाड़ी-सूरत ।
"जैनविजय" प्रिन्टिंग प्रेस-सूरतमें मूलचन्द किसनदास कापड़ियाने मुद्रित किया।
विक्रम सं० १९८४) .
वीर सं० २४५३
[ई०. सन् १९२७
मूल्य-एक रुपया।
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