________________ रानमा शक्ति वानुभूत नाम शक्तिको आठवां पर (11) वैशिषिक, संसारमें पदार्थ ठसे हम देखते हैं तो हमें सात पदार्थ ही ज्ञात होते हैं जो कि ऊपर वर्णित हैं। शङ्काकार-आप लेग शक्तिको आठ पदार्थ क्यों नहीं मानते यदि आप कहें कि शक्ति वातुभूत नहीं है तो परिक्षा पधनी हम आपके वचन मात्रसे यह नहीं 'मानसते, शतके साधक प्रमाण निषि और सबल हैं अतः शक्तिको आठनों पदार्थ मानना चाहिये / हम देखते हैं कि अग्निका प्रतिबन्ध कोई कारण नबतक नहीं समीप लाता मंगेबगर आना दहन करना कार्य जारी रखती है / प्रतिबन्धक मणि आदिके आनाने पर उपकी शक्ति विष्ट हो जाती है और फिर वइ दाह नहीं करती अरः यह बात सुक्ष्म या मान्य है, कि शक्ति पार्थान्तर है। यह शङ्काकारकी का मी अविचारित ही है, क्योंकि दाहकस्य कार्यके लिए अग्नि कारण है रेकिन काणान्तर रहित या किसके द्वारा वाधित सामर्थ काण कार्योत्ात्तिके लिए मजबूर नहीं किया जा सकना " / यहां जो मणके मद्भबसे अग्नि की दाहालका अपात्र हुआ सो यहां अमके दाहक कायके लिए उत्तेतकाभाव विशिष्ट मण्यमान कारण है जब कि मणिके द्रव होने पर उत्ते नकके अभावसे विशिष्ट मणि अमाव रूप कारण ही नहीं तो कार्य कैसे हो सकता है / अतः शक्ति कोई पदार्थान्तर नहीं है / (शङ्काकार) अस्तु, शक्ति पदार्थान्तर नहीं है ऐपा हम मी मानते हैं किन्तु आपने जो द्रव्यके पृथ्वी, अप (नल), तेन (अग्नि), वायु (इवा), आकाश, काल, दिशा. आत्मा, मन ये 9 भेद माने हैं उनमें झापको अन्धकार मी एक 10 वीं द्रव्य मानना चाहिये क्योंकि नीलं तमः चति' यहां पर अन्धकारमें आपकी द्रव्यका लक्षण अच्छी तरह घटित हो जाता है। आपने द्रव्यका लक्षण "क्रियावत गुणवत समवायि कारणं दव्य लक्षणं " ऐसा किया है / चलति ( चलता है) इस क्रियाका आधार होनेसे अन्धकारमें क्रियावत विशेषण रह ही जाता है तथा नीलं तमः (नीला अन्धकार -अन्धकारकी बहुसमुन्नतदशा) / ऐसा कहनेसे गुणवत् विशेषण मी घटित होही जाता है अतः अन्धकारको द्रव्य मानना ही चाहिये और उक 9 दायों में इसका अन्तर्भाव मी नहीं है / आकाश, कार, दिशा, आत्मा, मन, ये रूप रहित और अन्धकार सरूप हैं / अतः इनमें उसका ( अधकारका ) अंतर्भाव नहीं किया जासका। अन्धकार गन्ध रहित है अतः गन्धाली पृथ्वी में अन्तर्भावित नहीं होता तथा अन्धकार शीन गुण विशिष्ट भी नहीं है अतः नली, उगगुमसे मी रहित है अ ते नमें नहीं घट सका। अब ना कि अन्धकार उल नौ द्रव्योंमें अंतर मी नहीं होता, मौर