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और अभी (इस समय) इनका कोई समय निश्चित नहीं हुआ है। परन्तु स्रष्ट सं०११७४से कुछ पहिले इस कायका निर्माण हुआ है, क्योंकि इससे जाना जाता है कि बनारसमें , : ५.५० खष्ट सं० में राना गोविंदचन्द्र राज्य करते थे पश्चात विजयचंद्र तत्पश्चात् जयन्तचंद्र.
राजा हुये; और इनकी समामें इन्होंने प्रतिष्ठा पाई है । तथा इनकी प्रेरणासे हर्ष कविने यह नैषधीय चरित्र बनाया है। अब जयन्तचंद्रके कालसे इनका. मी वही काळ कुछ भागे पीछे हों। ___ हर्षकवि रामा नलकी विद्या बुद्धि वर्णन करते हैं___ " अधीति बोधाचरणप्रचारण; दशश्चतस्रः प्रणयन्नुपाधिभिः। -
चतुर्दशत्वं कृतवान्कुतः स्वयं न वेझि विद्यासु चतुर्दशत्तम् ॥ .
अर्थात-राजा नइने १५ विद्याओं में अध्ययन, अर्थज्ञान, अनुष्ठ'न, अध्यापन : . इस प्रकार चार भास्था करते हुये चतुर्दशत्व प्राप्त किप्त तरह किया यह मैं नहीं . नानता, यह को सामान्वार्थ है । हम यहां पूछते हैं १४ विद्याओं में चतुर्थशस्त्र क्या प्राप्त किया विद्या. तो १४ होती ही हैं, उससे क्या अथषा, यह कविका पिष्टपेषण है। और यदि चतस्त्राबल्यात्वेन सिद्ध करोगे तो भी ठीक नहीं क्योंकि चतुर्दशव का वह स्वयं ज्ञाता के दूसरी बात ये है कि क्षत्रियोंको अध्यायनका अधिकार नहीं है यह मामृति वचन है, लेकिन क्षत्रिय राना नल अध्यापन करता यह बात शास्त्र विरुद्ध है। अच्छा और पदलालित्य, उत्प्रेक्षा आदि सजन जान सकते हैं कि किसमें विशेषता है।
कवि हरिश्चन्द्र- .
" कृतौ न चेत्तेन विरश्चिना सुधानिधानकुममा सुदृशः पयोधरौ।' .. तदङ्गालग्नोऽपि तदा निगद्यतां स्मरः परासुः कथमाशु जीवितः॥
अर्थात-ब्रह्माने सुनयनीके स्तनों को अमृत रखनेके वो घड़े बनाये हैं, यदि न बनाये होते तो उसके मन में लगा हुआ मृतकामदेव किस तरह नीवित होता, यह पतलाश्ये । तात्पर्य यह है कि महादेवने कामदेवको भस्म कर दिया था, अतः मर गया और मरा हुमा अमृतसे जीवित हो जाता है, वही उत्प्रेक्षा की है कि रानीके स्तन अमृन फाश, हैं, और उससे कामदेव जीवित हो गया है। . श्री हर्प- . . . .
अपि तदपुषि प्रसर्पतो मिते कान्तिझरैरगाधताम् ।
स्मरयौवनयो। खलु यो प्लवकुम्भौ भवतः कुचावुभौ ॥ .::.. ....... अर्थात्-रानी दमयंतीके कुच (स्तन) कांतिझरसे भगाधको प्राप्त दययंती के शरीरमें ... स्मर और यौवनके तैरनेके लिये दो घड़े हैं।