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छन बंध। शीतलं विदिता शीतीभूतं स्तुमोऽनघम् ।
सुविदा परमानन्द सूदितानङ्ग दुर्मदम् ॥ अर्थात् सर्व पदार्थज्ञ, शीतीभूत, पाप रहित, विद्वानोंको भानन्ददायि कामदेवको नष्ट * करनेवाले शीतलनाथ भगवानको नमस्कार करते हैं।
हारवन्ध। चन्द्रातपंच सततप्रभपूतलाभम् । भद्रं दया सुखद मंगल धाम जालम् ॥ वन्दामहे वरमनन्तजयान् याजम् ।
त्यां वीरदेव सुरसंचय शास शास्त्रम् । अर्थ, स्पष्ट है यहां पर वीर देवकी स्तुति सरस्वती कण्ठामरण भादिमें नहीं पाय जाता है।
सर्पबन्ध
"पल्लएकमहिता" । अर्थात् पल्लव पता किसको प्राप्त हुआ; अथवा नार पुरुषोंसे पूजित की गई।
इत्यादि नाना प्रकारके बन्ध होते हैं मुरन, गोमूत्रिका, अष्टदल, घोड़इदकपद्म आदि समझना चाहिये, हमारे कहनेका तात्पर्य यह है कि ये सब नेनेवर प्रसिद्धः सरस्वती जण्ठामरणादिमें नहीं पाये जाते हैं। यह संक्षेपसे बता दिया गया है, मगर अन्य काव्यों में हो मी तो इसके जैसे पदलालित्य आदिमें कम हैं। पाठक ! लेख बह जानेके पयसे यह विषय छोड़ कर इसी काव्यका अङ्क समस्यापत्ति है, इस समस्याकी समस्यापूर्ति ति कवि. योंने भच्छी की है तो हम कहेंगे, कि श्री भगजिनसेनानायकी हुई समस्यापूर्तिका जान्न प्रमाण एक पाम्युिदयका भवतरण है । इनके मुकाचिलेका कोई भी कवि इनके सम्प्रदायमें नहीं हुआ है। यह कवित्व शक्तिकी महिमा है कि शृंगारमय काव्यको शान्तरप्तमय, करदेना।
श्री कविवर कालिदास और कविसिंह श्रीवादीमसिंह
" क्षत्रचूड़ामणि" नामक काव्यको प्रायः सभी जानते हैं। भतः शन दें कि यह क्या है : कालिदास
"प्रजानां विनयाधानाद्रक्षणाद्भरणादपि । स पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः॥ रात्रिंदिव विभागपु यदादिष्टं महीक्षिताम् । तस्तिषवे नियोगेन सविकल्प पराङ्मुखः॥ सवेला वप्रवलयां परिखीकृत सागराम् । अनन्यशासनामुवी शशासैकमहीमिव ॥. (श)