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भगवजिनसेनाचार्य कहते हैं... ............ .... "पुराणकविभिः क्षुण्णे कधामार्गेऽस्ति मे गतिः ॥ अर्थात-पूर्व कवियोंसे शुद्ध किये कंधा मार्ग में मेरी गति हो. नायगी । . श्रीजिनसेनाचार्य---
- के गंभीरः पुराणाधिक मदोध दुर्विधः। .. सोऽहं मेहोदधि दोश्यां तितीर्ष यामि हास्यताम् । अर्शत-गमीर पुराण समुद्र कहाँ, और गुप्त सरीखे दुर्बोध जन. कहीं, यह मैं नाहुओंसे बड़े भरी समुद्रको तेरनेकी इच्छा करने वाला हास्यताको प्राप्त होउंगा । ... श्री कालिदास-.
.... ... .. क. सूर्यप्रभवोवंश क चाल्यविषया मतिः। तिती दुस्तरे मोहादुऽपेनास्नि लागरम् ॥....
अर्थात्-सूर्यवंश कहां, और अल्पविषयी बुद्धि कहाँ, लेकिन सूर्यवंशका वर्णन करना मानो मोहसे दुस्तर समुद्रकों टूटी नौकासे पार करना है।
कालिदास कुमारसम्म नामक काव्यमें रचना करते हैं कि-:: असंभृत मण्डनमगायटेरेनासवाख्यं करणं मंदस्पः। - कामस्य पुष्पव्यरिक्तमत्र वाल्यात्परंसाथवयंप्रपैद् ॥ . महाकविहरिश्चन्द्र अपने धर्मशर्माम्युदयमें कल्पना करते हैं कि: असंभृतं मण्डनमङ्गन्यष्टे नष्टक मे यौवनरत्नमेतत् । इतीय वृद्धो नतपूर्वकायः पश्यन्नधोऽधो भुवि वन्भ्रमीति ॥
अर्थात्-अष्टयष्टिका विना प्रयत्न सिद्ध यौवनरूपी रत्न कहाँ नष्ट हो गया इसी लिये ही क्या ननं काय होकर वृद्ध मनुष्य देखता हुआ पृथ्वीपर घूपता है। ... भव यहां पर विचारनेकी बात है कि "असम्भृत मेंण्डनमङ्गयष्टे " इतना पुरा पद, कालिदासने कुमारसम्म में जोड़कर श्लोक तैयार किया है, तथापि, हरिश्चन्द्रकविकी रचना, सौन्दर्य, कलकार, संप्रेक्षामें कम ही हैं।
. श्री मावकविको भी. सारा संसार जानता है, क्योंकि यह बात प्रसिद्ध ही है कि • "काव्येषु माघः कविकालिदास अर्थात काव्यों में माघ काव्य, और: कड़ियों में कालिदास : प्रसिद्ध हैं। आपको कालिदासके बारेमें पूर्ण परिचय मिल ही गया है, माघकविकी इस
प्रसिद्धि के साथ २ यह भी बात है कि माघकविके श्लोक अग्निसाक्षात्कार : बनाकर लिखे. शये हैं, तथा जो दुपित हो लोक हो वे इस अग्नि में जल जावे रेंसी कविकी प्रतिज्ञा पी, पर हम नहीं कह सकते यह दात कहाँ तक सच है, क्योंकि इतने इलोक दृषित है कि
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