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निष्पादनदक्षी लक्ष्मीकटाक्षविक्षेपविसी दर्पज्मरः । मन्दीकृतमणिमन्त्रौषधिप्रभाव प्रभावनाटकनटनसूत्रधारः स्मयापस्मार इति किं-. चिदिह शिक्ष्यसे।
. (गचिंतामणि) . :: बस, ऐसा ही विज्ञकुल वर्णन शब्द परिवर्तन कर पाणकविने किया है । जैसे"तात चन्द्रापाड़ विदितवेदितव्याल्याधीतसर्वशास्त्रस्यते नावल्यमुपदेष्टव्यमस्ति, केवलं च निसर्गत एव भानुभेद्यमतिगहनं तमो पौवनप्रभवम्, दारुणी लक्ष्मीमदोऽत्यन्ततीबोदर्पदाहज्वरोष्मा, अमन्त्रगम्यो विषमो विषय विषस्वादयोह इत्यतो विस्तरेणाभिधीयसे।"
(कादम्बरी) । .. और भी. महुतसी जगह मिलान पाया जाता है । गधचिन्तामणिमें शान्त रस बतला. . नेके लिये, विषय घासनादि छुड़ाने के लिये शिक्षा दी है कि
अभिनवविहंगलीलावनं यौवनं, अनङ्गभुजङ्गरसातलं सौन्दर्य, स्वरविहारशैलूषवृत्तस्थानमैश्वर्य, पूज्य पूजाविलङ्घन. लधिमजननी महासत्वता च प्रत्येकमपि भवति जननामनर्थाय, चतुर्णी पुनरेतेषांमेकत्रसन्निपातःसन सर्वानधनाभित्यर्थस्मिन् का संशीति
(गचिन्तामणि) . .....इसी मावको लेकर वाणकविने लिखा है कि
: "गर्भश्वरत्वमाभिनवयौनवत्वमप्रतिमरूपत्वममानुषशक्तित्वं चेति महतीयमनर्थपरम्परा, सर्वतः नामेकैकमप्येषायतनम्, किमुत समवायः . . . .
(कादम्बरी) ....काव्यप्रेमियो ! यदि फिर भी निष्पक्षपात दृष्टि इन गोपर डालेंगे तो अवश्य स्फुट रीतिसे मालूम हो जायगा कि कादम्बरीकी रचना गद्यचिन्तामणिसे मिलती है, और संभव है कि इन्होंने कुछ वंश लेकर वर्णन किया हो, और यह भी बात है कि इनका ऐसा करने पर भी वादीमसिंहकी रचना और पदलालित्य, सौन्दर्य से कहीं अधिक न्यून है।
अर हम. कादम्बरीकी विशेष आलोचना, मिलान करके एक बातका संवर्श और करा देना उचित समझते हैं, वह यह है कि इसमें अर्थशाठिन्य, शब्दकाठिन्य कहीं २ इतना है कि प्रकृतं कथाभाग भी स्मरण रखना मुश्किल पड़ जाता है, और सरलता · मी इतनी है कि हितोपदेशादिकी तरह गद्य कह डालते हैं-अर्थकाठिन्यका एक उदाहरण देते हैं कि
" कुमुदिन्यपि दिनकरकरानुरागिणी भवति" इत्यादि- . . . .अर्थात्- कुमुदिनी चन्द्रमाकी किरणों से अनुरागिणी होती है, ये यहाँपुर भर्य,