________________
. ( ५६ ) रक्खा है कि मूर्ति तो कुछ नहीं कर सकती भावोंसे भगवान मान लिये तो भावों का ही फल मिलेगा यथा राजनीतौ :
नदेवोविद्यतेकाष्ठे,न पाषाणेनमृन्मये,भावेषु विद्यतेदेव, स्तस्माद् भावोहिकारणम् । १। ___ अर्थ-काठ में देव नहीं विराजते न पाषाण में न मिट्टी में देव तो भाव में हैं ताते भाव ही कारण रूप है। १। ___ उत्तरपक्षी-तुम्हारा यह कहनाभी उदय के जोर से है अर्थात् भूल का है क्योंकि कोई पुरुष लोहे में सोनेका भाव करले कि यह है तो लोहे का दाम परन्तु मैं तो भावों से सोना मानताहूं अव कहो जी उसे सोनेके दाम मिल जायेंगे अपितु नहीं । तो फिर इस धोखे में ही न रहना कि सर्वस्थान (सबजगह)