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मूर्तिपूजाममन्त्रानामन्येषामपिगुणगृह्याणा मेतत् पश्यताम् मनोह्रादो भवेदिति ॥
ह० पण्डित राधाप्रसाद शास्त्री |
ॐ
पुरुष रचें जो
दवैया छन्द ॥ अहो विचित्र न मोको भासे ग्रंथ नवीन । अवला रचें ग्रन्थ जो अद्भुत यही अचम्भो हम ने कीन || प्राकृत भाषा का जो हार हिन्दी मांहि दिखाओ आज । तांते धन्यवाद का भांजन है अवला सबहन सिरताज १ निज २ धर्म न जाने सगले पुरुषन में ऐसी है चाल | तो किम अवला लखे धर्म निज याही ते पड़ता जंजाल || विद्यावल से पाया यो