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________________ ( २५ ) ___ आयगुत्तेसयादतें छिन्नसोयअणासवेतेसुद्ध धम्ममक्खाति पडिपुन्नमणेलिसं १ अस्यार्थः । गुप्तात्मा मनको विषयोंमे रोकनेवाले सदा इन्द्रियोंको दमनेवाले छदे हैं श्रोत्र,पाप आवने के द्वारे जिनोंने अणाश्रवी अर्थात् सम्बर के - धारकते(सो)पुरुष शुद्धधर्म आख्याती(कहते हैं) । प्रतिपूर्ण अनीदृश अर्थात् आश्चर्यकारी अत्यु तम,अब देखिये इसमें उक्त गुणवाले पुरुषको । शुद्धधर्म कहनेवाला कहा है परन्तु व्याकरण ही पढे को सत्यवादी नहीं कहा ॥ । यदि तुम्हारे पूर्वोक्त कहे प्रमाण माने जाय वे तुम्हारे बूटेराय जी आदिक संस्कृत नहीं ये तथा पीनांवरी ओर पीतांबरीयों के अनुका जो संस्कृत नहीं पढे हैं वे सब मिध्या . मादी है और असंयमी हैं उन की बात पर
SR No.010483
Book TitleSatyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherLalameharchandra Lakshmandas Shravak
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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