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( ५ ) धातु,का अर्थ जय, है जिसको नक् प्रत्यय होने से जिन, शब्द सिद्ध होता है अर्थात् राग द्वेष काम क्रोधादि शत्रुओं को जीत के जिनदेव कहाये, जिनस्यायं जेनः अर्थात् जिनेश्वर देवका कहा हुआ जोयह धर्महे उसे जैनधर्म कहते हैं
५--जैनी। . ५-जैनी मुक्तिके साधनों में यत्न करने वाले को मानते हैं। अर्थात् उक्त जिनेश्वर देव के कह हए जैनधर्म में रहे हुए अर्थात् जैनधर्म के अनुयायिओं को जेनी कहते हैं।
--मुक्ति का स्वरूप। ६-मुक्ति, कर्म वन्ध से अवन्ध होजाने अर्थात् जन्ममरण से रहित हो परमात्म पदको प्राप्त कर सजना . सदैव सर्वानन्दमें रमन