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( १७५ ) यहही फलहे कि सत्यासत्यका निर्णयकरें परन्तु लड़ाईझगड़े न करने चाहिये।अपितुझुटवोलना और गालियें देनी तो सवको आती हैं. परन्तु धर्मात्माओंका यह काम नहीं वस सब मतों का सार तो यह है कि अशुभ कमेंको तजो औरशुभ कमांको ग्रहण करो अर्थात् हिंसा मिथ्या चोरी मद मांस अभक्षादिका त्याग अवश्य करो और दया दान सत्य शीलादि अवश्य ग्रहणकरो.काम क्रोध लोभ मोह अहंकार अज्ञानको घटायाकर यत्न विवेकज्ञान क्षमा संयमको बढायाकरो अपनेरधर्मसवन्धीनियमोंपरदृढरहोज्यादाशुभम्
यदि इस पुस्तकके बनाने में जानने अजानने सूत्र कर्ताओंकअभिप्राय से विपरीत लिबागया होतो (मिच्छामिदकडम्)॥