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( १५५ ) और इन मूर्ति पूजकों में से ही धन विजय संवेगी अपनीकृत चतुर्थस्तुति निर्णयप्रकाश शं. कोद्धारपृ०८१ में लिखता है किगच्छा चारपय. न्नाप्रमुखमां श्रीवीरसासनामां श्वेतमानो पेत वस्त्र को त्याग पीतादि रंगेला वस्त्र धारण करतेसाधुने गच्छ में बाहर कहिये गाथा.॥
जत्थय वाडियाणं तत्तडियाणंच नहयपरिभोगी, मुत्तुं सुकिल्ल वत्थं, कामेरा तत्थ गच्छंमि ८९ टीका तथा यत्र गछेवारडियाणंनि रक्त वस्त्राणां तत्तडियाणंतिनील पीतादि रंजित वस्त्राणां च परिभागः क्रियते कि कृत्व त्याह मुक्तापरित्यज्य किं चल वस्त्रं पनि योगाम्बर मित्यर्थः नत्र कामरनिःकानयादा न काचिद पीति अपि गाथा छंदनी । गणिगोयम अज्जा उविअन्ने अवस्यविवन्जिर,
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