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मोक्ष से परांग मुख अणुश्रोत्रगामी संसार में - माणेवाला है, आश्रवके कारणले दूजा भाव धर्म अर्थात्भाव पूजासो शुद्ध मोटा धर्म है, कस्मात् कारणात् प्रतिश्रोत्र गामी अर्थात् संसार से विमुख संवर होनेते, अब कहोजी पहाड़ पूजको जिनवल्लभ सूरी के शिष्य जिनदत्त सुरीने मूर्ति पूजा के खंडन में कुछ वाकी छोड़ी है इसमें हमारा क्या वस है और ऐसे बहुत स्थल हैं परंतु पोथी के बढ़ाने की इच्छा नहीं क्योंकि विद्वानों को तो समस्या ( इशारा ही बहुत है ) हे भव्यजीवों पक्षपात का हठ छोड़के अपनी आत्मा को भव जल में से उभारनेके अधिकारी वनो ।
(२५) पूर्व पक्षी - भलाजी कई कहते है कि मूर्तिपूजा जैनियोंमें १२ वश काल पीछे चलीहै कई कहते