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( ११८ ) उच्यते ॥६॥ चैत्यं गुणज्ञो जेयः, चेइ च जिन शासन इत्यादि ११२ । नाम अलंकार सुरेश्वर वार्तिकादि वेदान्ते शब्द कल्पद्रुम प्रथम खण्ड पृष्ठ ४६२ चैत्यं क्ली पुं आयतनम् यज्ञ स्थानं देवकुलं यज्ञायतनं यथा यत्र यूपा मणिमया श्चैत्या श्चापि हिरण्मयाः चैत्य पुं करिभः कुञ्जरः इत्यादि और ग्रंथों में चले हैं। __ अब इन पूर्वपक्षी हठ बादियों का पूर्वोक्त कथन कौन से पातालमें गया।
(२०) पूर्वपक्षी-इस पूर्वोक्त लेख से तो चैत्य शब्द का ज्ञान और ज्ञानवान् यति आदिक नाम ठीक है परन्तु हम यह पूछते हैं कि मूर्ति पूजने में कुछ दोष है।
उत्तरपक्षी-सूत्रानुसार षटकायारंभादि दोष