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( ८१ ) है परन्तु अन्य लिंगको (भेषको) नहीं छोड़ा है तोउसको वंदना करनीनहीं कल्पै तथा अम्बड जी को ही समझलो कि भेषतो परिव्राजक का था और ज्ञान अरिहंतका ग्रहण किया हुआथा अर्थात् पूर्वोक्त संम्यक्त सहित १२ व्रत धारी श्रावक था परन्तु उसको भी श्रावक नमस्कार वंदना नहीं करते क्योंकि जो वडा श्रावकजान के उसे छोटे श्रावक नमस्कार करें तो अजान और लघु संतानादि देखने वाले योंजाने कि यह परिव्राजक दंडी आदिक भी श्रावकोंकवंदनीय हैं तो फिर वह हर एक पाखंडी वाह्य तपस्वी धनी रमाने वाले चरस उड़ाने वाले कन्द सूल भक्षणकरनेवाले असवारियों पर चढ़नेवाले डेरे बन्ध परिग्रह धारियोंकी संगत करने लग जाय कि हमारे वड़े भी गंगा जी में मृतक के फूल