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( ७८ ) का मैं मूल पाठ और अर्थ और उस का भाव प्रकट लिख के दिखा देती हूं बुद्धिमान् पक्षको थोड़ी सी देर अलग धर के स्वय ही विचार करेंगे कि इस पाठ से मंदिर मूर्ति का पूजना कैसे सिद्ध होता है।
उवाई जी सूत्र २२ प्रश्नों के अधिकार में प्रश्न १४ में लिखा है अंम्मडस्लणं परिव्वाय गस्स णोकप्पई, अणउत्थिएवा, अणउत्थिय देवयाणिवा, अण उत्थियं परिग्गहियाणिवा अरिहंत चेइयं वा, वंदित्तएवा नमंसित्तएवा जावपज्जवासित्तएवा णणत्थ अरिहंतेवा अरिहंत चेइयाणिवा।
अर्थ ___ अम्बड नामा परिब्राजक को (गोकप्पई) नहीं कल्पै (अणुत्थिएवा) जैनमत के सिवाय