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करना ऐसा तो लिखा देखने में आया नहीं और निसाना जिस के लगाना हो उस के लगावे परंतु रस्ते में ईंट पत्थर धरके उसमें न लगावे अर्थात् श्रुतिरूप तीर परमेश्वरके गुण रूपस्थल में लगाना चाहिये परंतु रस्ते में पत्थर की मूर्ति को धरके उसमें श्रुति लगानी नहीं चाहिये क्योंकि जब श्रुति अर्थात् ध्यान मूर्ति में लगजायगा तो परमेश्वरके परम गुणों तक कभी नही पहुचेगा। इत्यर्थः।। ___ (१२) पूर्वपक्षी-आपने युक्तियों के प्रमाण देकर मूर्तिपूजा का खंडन खूब किया और है भी ठीक परतु हमने सुना है कि सूत्रों में ठाम ठाम मृति पूजा लिखी है यह कैसे है?
उत्तरपक्षी-सूत्रों में तो मूर्तिपूजा कहीं नहीं लिखीहै,यदि लिखी है तो हमें भी दिखाओ।