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संस्कृत के जैन वैयाकरण एक मूल्याकन ६७
१ परिपूर्णगण मे किसी नियम विशेष के अन्र्तगत आने वाले सभी शब्दो की
गणना दी जाती है। २ आकृतिगण के अन्तर्गत कुछ नमूने मात्र दिये जाते हैं। शिष्टप्रयोग के
आधार पर अन्य शब्दो को इसके अन्तर्गत शामिल किया जा सकता है। पाणिनि सूत्रो से शब्दो के गण-विभाजन का स्पष्ट पता नहीं चलता। इसके लिए वृत्तियो पर निर्भर करना पडता है । शाकटायन ने इनको स्पष्ट भेदक एकवचन और बहुवचन के रूप मे दिया है। एकवचन के प्रयोग परिपूर्णगण और बहुवचनान्त आकृतिगण के अन्तर्गत परिगणित है । उदाहरण के लिए सूत्र "कच्छादेन्टन्टस्थे ।३।११४६" के अन्तर्गत परिगणित शब्द परिपूर्णगण तथा रूढादिभ्य १।३।४" के अन्तर्गत दिए गए शब्द आकृतिगण है । वृत्ति मे स्पष्ट लिखा है कि "वहुवचनादाकृतिगणोऽयम्।" ____ शाकटायन के पूर्व इस प्रकार का गण-विभाजन जैनेन्द्र मे उपलब्ध है (दृष्टय सूत्र ३।२।१४६, ३।१।८६, ३।११४६ तथा ३।१४) । हेमचन्द्र ने शाकटायन को इस परम्परा को आगे बढाया है।
पाणिनि के साथ तुलना करने पर ज्ञात होता है कि शाकटायन मे गणसूते नही है । पाणिनीय गणसूत्रो को जैनेन्द्र की तरह शाकटायन ने भी त्याग दिया है । हेमचन्द्र ने भी इसी परम्परा को अपनाया है।
शाकटायन के परिभाषा सूत्र ___ व्याकरण नियमो की सही व्याख्या के लिए कतिपय विशेष सिद्धान्तो की आवश्यकता होती है। इन्हें परिभाषा कहते है । शाकटायन सूतो तथा अमोधवृत्ति मे यत्र-तत्र परिभापा-सून उपलब्ध है किन्तु एक साथ नहीं है । स्वतन्त्र रूप से जो सौ परिभापा सूत्र प्राप्त होते है, उनका तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह निर्णय करना कठिन है कि ये परिभाषा सूत्र स्वय पाल्यकीति शाकटायन के है या अन्य किसी शाकटायन के । क्योकि इन सौ सूत्रो मे सम्पूर्ण रूप से वे परिभाषाए भी नही
आ पाई, जो शाकटायन और अमोघवृत्ति मे उपलब्ध है । डाक्टर विरवे ने ज्ञानपी० सस्मरण मे उक्त परिभाषा सूत्र अपनी प्रस्तावना के परिशिष्ट एक के रूप मे प्रकाशित किए है तथा प्रस्तावना मे इनका विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया है।
यक्षवर्मा कृत चिन्तामणि वृत्ति
शाकटायन पर यक्षवर्मा कृत चिन्तामणि नाम की वृत्ति है। अपनी वृत्ति के विषय मे उन्होने स्वयं लिखा है कि अमोधवृत्ति नामक वृहद् वृत्ति को सक्षिप्त