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३२ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
भर दिया और सब वात विस्मृत हो गई। केवल अर्हन्त और सिद्ध सब की आखो के सामने मूर्त हो गए। जागरण के उस पवित्र वातावरण मे सात मिनट का अनशन पूर्ण कर आचार्यवर समाधिस्थ हो गए। उनके प्राण आखो के मार्ग से बाहर चले गए केवल स्यूल शरीर शेष रह गया । आचार्यवर अन्तिम क्षण तक जागृत रहे । ऐसी जागृत मृत्यु किसी महान् साधक को ही उपलब्ध होती है।
विहगावलोकन
जन्म
दीक्षा
आचार्यपद स्वर्गवास जन्मस्थान दीक्षा-स्थान आचार्यपद-स्थान स्वर्गवास-स्थान गृहस्थ साधारण साधु आचार्य सर्व आयु
१९३३ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया १६४४ आश्विन शुक्ला तृतीया १९६६ भाद्रपद पूर्णिमा १६६३ भाद्रपद शुक्ला षष्ठी छापर (राजस्थान) वीदासर , लाडणू , गगापुर , १०। वर्ष २२ वर्ष २७ वर्ष ५६।। वा
टिप्पणी
१ २ ३
छापर प्रदेश का विवरण राठोड रामदेव के विभक्खरी छन्दो पर आवृत है। साघुशतक, १६ । ममीरा नेन की दवा है। उसकी यही परीक्षा है कि उसे नीले वस्त्र पर लगाने से उस की नीलिमा मिट जाती है । नारानक, ६२ ! विद्यावाचस्पति, राष्ट्रपति समदात, राष्ट्रीय सस्कृत-विद्वान् प्रोफेसर विद्याधरजी मात्री का एक पन्न फुछ विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करता है। उसका अ॥ इस
प्रकार है
"पूज्य श्री पागणीजी महाराज के चूर पधारने पर मुझे पूज्य पिताजी विधायानपति श्री देवीप्रगादी शास्त्री महाराज के दर्शनार्य श्री रायचन्दजी सुराना