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संस्कृत के जैन पौराणिक काव्यो की शब्द-सम्पत्ति ४५५ (उ) पुस्तकर्म-सम्बन्धी शब्द : पुस्तकर्म (२४।३८), क्षय (२४।५८), उपचय (२४।३८), सक्रम (२४१३८), तक्षण (२४।३८), काष्ठादि (२४१३८), उपचिति (२४।३९), मृदादि (२४।३९), उपपेय (२४१३९), सक्रान्त (२४।३९), प्रतिबिवाधान (२४१५६) यन्त्र (२४।४०), नियन्त्र (२४।४०), सच्छिद्र (२४।४०) निश्छिः (२४१४०)।
(अ) पत्रच्छेद्य-सम्बन्धी २०८ : पनप्छेद्य (२४।४१), बुष्किम (२४।४१), छिन्न (२४१४१), अच्छिन्न (२४।४१), सूची (२४।४१), दन्त (२४१४१), कर्तरी (२४।४२), सम्बन्धसयुत (२४।४२), सम्बन्धपरिवजित (२४।४२), पनवस्त्रसुवर्णादिसम्भव (२४१४३), स्थिर (२४।४३), चचल (२४।४३), सवृतासवृतादिन (२४।४३)।
(ऋ) माल्यनिर्माण सम्बन्धी सन्द आई (२४।४४), शुक (२४।४४), तन्मुक्त (२४।४४), सिक्यकादि समुद्भूत (२४।४५), रणप्रबोधन (२४१४६), व्यूह सयोग (२४१४६)। ___ (ऋ) सुगन्धित पदार्थ-निर्माण सम्बन्धी शब्द : योनि (२४।४७), द्रव्य (२४।४७), अधिष्ठान (२४।४७), रस (२४१४७), वीर्य (२४१४७), कल्पना (२४।४७), परिकर्म (२४।४७), गुण (२४।४७), दोष (२४।४८), तगर (२४।४८), वर्ण (२४।४८), पतिका (२४१४८), कषाय (२४१४६), मधुर (२४१४६), तिक्त (२४।४६), कटुक (२४१४६), अम्ल (२४१४६), शीतवीर्य (२४१५०), उष्णवीर्य (२४१५०), विवादानुवादसवादयोजन (२४-५०), स्नेह (२४१५१), शोधन (२४१५१), क्षालन (२४।५१), स्वतन्त्र (२४१५२), अनुगत (२४।५२), गन्धयुक्ति (२४१५२),।
(ल) आस्वाधविज्ञान-सम्बन्धी : भक्ष्य (२४।५३), भोज्य (२४१५३), पेय (२४१५३), लेह्य (२४१५३,५५), चूष्य (२४।५३), कृत्रिम (२४१५३,५५) अकृत्रिम (२४१५३,५५), यवागू (२४१५४), ओदन (२४१५४), शीतयोग (२४१५४), जल (२४१५४), मद्य (२४।५४), राग (२४।५५), खाण्डव (२४१५५), पाचना (२४।५६), छेदन (२४१५६), उष्णत्वकरण (२४१५६), शीतत्वकरण (२४१५६), आस्वाद्यविज्ञान (२४१५६) ।
(ल) रत्न-परीक्षा सम्बन्धी शब्द वज (२४१५७), मौक्तिक (२४१५७), वैडूर्य (२४।५७), सुवर्ण (२४।५७), रजतायुध (२४।५७), वस्त्र (२४१५७), सख (२४।५७), रत्न (२४१५७), लक्षण (२४।५७)।
(ए) सिलाई-कढाई-सम्बन्धी शब्द तन्तुसन्तानयोग (२४१५८) बहुवर्णक रागाधान (२४१५८)।
(ऐ) उपकरण-निर्माण सम्बन्धी शब्द लोह (२४१५६), दन्त (२२।५६),