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________________ संस्कृत के जन पौराणिक काव्यो की शब्द-सम्पत्ति ४५१ निवेदन (१६।२२०), लज्जन (१६।२२३), काण्डदर्शन (३६।१८६), मार (३०।१८६), लावण्यरस (६६।१८६), वक्ष सिजद्वय (३६।१६०), सनस्त, नीविरतग्रहम् (३९।१६१)- उत्तेजनाभिमण्डल (३९।१६१), कक्षोद्देश्य (३९।१६१), स्मरवण (३९।१६३), स्र समानाशुक (१२२।५७), वाहुमूलदर्शन (१२२१५७)- नितम्वफलक (१२२।५६) आदि । १२ युद्ध, सेनायात्रा उपद्रवादि से सम्बद्ध शब्द चतुरग सैन्य (४१६८), दृष्टियुद्ध (४।७१), वाहुरण (४।७३), चक्ररत्न (४।७२), चमू (६।४३६, ५१।४)), वाहिनी (६।४४६), गज (६।४४७), रथ (६।४४७), पदाति (६।४४७), तुमुल (६।४५१), नगर-रोध (६।४५८), ध्वज (६।४५८), रणसज्ञा-विधान (७।६७), सन्नाहमण्डनोपेत (७।६८), ककटछन्नविग्रह (७७१), सप्ति (७७३), वाजि (७७३), शस्त्रवर्ष (७८१), स्वकनामाश्तिशर (७८५), पलायन (७।६०), अनुमार्ग (७।६१), महारथ (८।१९७), विमान (८।१९८), स्यन्दन (८।१६६), सेना-सम्पात (८।२०१), शस्तसम्पात (८।२०१, १०।११२), रणमस्तक (८।२०८), वीर-शय्या (८।२४१), कलकल (८।२४०), प्रतिक्रिया (८।२४३), चिकित्सक (८।२४३), लुटन (८।४४२), प्रयाणक (१०॥४३), धनव्यूह (१०।१०७) भर्तृवाक्य (१०१११४), धानुक (१०।१२१, १२७) रयस्य (१०।१२१), मत्तवारण (१०।१२२, १२।१६०), ककट (१०।१२५), धनुर्वेद (१०।१२८), व्रणभगविधान (१०।१३६), गवेषण (१०।१३६), प्रभातहतत्र्य (१०।१३७), सन्नाहमण्डप (१२।१८१), सन्नाहमज्ञार्थ तूर्यवादन (१२।१८१), आधोरण (१२।१६०), चमूमुख (१२।१६३), मुखभग (१२ १९४), सेवामुखावसाद (१२।१६५), पृतनावक्त (१२।१६५), सुमनर (१२।१६७), सुशस्त्र (१२।१९७), सुयान (१२।१९७), सैन्यवक्त्र (१२।१६६), समरविधि (७५॥१), न्याय्य सग्राम (१२।२६०), युद्ध-ग्रहण (१९८६), जीवनाह (१९६१), लुटित (१९७०) उपद्रव (१९६१), पत्ति (५६।४), सेनामुख (५६।४), गुल्म (५१।४), पृतना (५६।४), अनीक (५६।५), अक्षौहिणी (५६।४, १०।१६) आदि। १३ सैनिक वेषभूषा-शस्त्रास्त्र सम्बन्धी शब्द हेति (७।६८), सन्नाह (१२।१८१), मण्डला (१२।१८२), ककट (१०।१२५, १२।१८२), धनु (१२।१८३), शिरस्त्राण (१२।१८३), अर्द्धवाटिका (१२।१८३), सायकत्रिका (१२।१८३), असि (१०।११२, १२।१८८, २११, २५७, ६२।७), तोमर (१२।१८८), पाश (१२।१८८, २५८), ध्वज (१२।१८८), छत्र (१२।१८८), शरासन (१२।१८८), करवाल (१२।२१५, ७३।१७६), कनक (१२।२११, २३४, २५७, २७।६१, ७४।४६), गदा (१०।११२, १२।२११, २५७,
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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