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४२८ संकृत-प्राकृत व्याकरण और कोण की परम्परा
सूयरिका सनाश्च खशा विन्ध्या णिवापदा । मेखला शूरसेनाश्च पातीकोलूककोराला ।। दरीगान्धारसीवीरा पुरीकोवरकोहरा ।' अन्ध्रकालालिगाधा नानाभापा पृथगुणा ।।
२ हरिवशपुराणकार जिनसेन (अ) दशोत्तरशत तेपा नगराणि खगामिनाम् ।
पष्टित्तरमागे स्यु पचाशदक्षिणे पुन ।।
आदित्यनगर रम्य पुर गगनवल्लमम् । पुरीचमरचम्पा च पुर गगनमण्डलम् ।। विजय जयन्त च शकजयमस्जियम् । पमाल केतुमाल च रुद्राश्व च धनजयम् ।। वस्वोक सानिवह जयन्तमपराजितम् । वराह हस्तिन सिंह सोकर हस्तिनायकम् ।। पाण्डुक कौशिक वीर गोदिक मानव मनु । चम्पा काञ्चनमशान मणिव जयावहम् ।। नैमिप हास्तिविजय खण्डिका मणिकापनम् । अशोक वेणुमानन्द नन्दन श्रीनिकेतनम् ।। अग्निज्वाल महाज्वलि माल्य तत्पुरनन्दिनी । विद्यत्प्रभ महेन्द्र च विमल गन्धमादनम् ।। महापुर पुष्पमाल मेघमाल शशिप्रभम् । चूडामणि पुष्पचूड हसगर्भ बलाहकम् ।। वशालय सौमनस तयव परिकीर्तितम् । विजयाोत्तरश्रेण्या पष्टिरिष्टा इमा पुर ।। रथनूपुरमानन्द चक्रवालमरिज्जयम् । मण्डित बहुकेत्वाख्य नगर शकटामुखम् ।। पुर गन्धसमृद्ध च नगर शिवमन्दिरम् । वैजयन्त रथपुर श्रीपुर रत्नसचयम् ।। आषाढ मानव सूर्य स्वर्णनाभ शतहदम् । अगावत जलावत तथावत्तं वृहद्गृहम् ।। शखवज्ज़ च नाभान्त मेघकूट मणिप्रभम् । कुजरावर्तनगर तथैवासितपर्वतम् ।।