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४०६ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
विपयो की पुनरावृत्तिया नहीं की है। हिन्दी अनुवाद सटीक और चुने हुए हिस्सो के ही दिये गये हैं। लक्षणावली मे दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनो मप्रदायो के सामग्रीस्रोतो का यथासंभव उपयोग और दोहन किया गया है। इसके परिशिष्ट पर्याप्त उपयोगी है, जिनके अन्तर्गत ग्रन्थ, ग्रन्यकार, और कालानुक्रम से अनुक्रमणिकाए दी गयी है । विद्वान् कोशकार हैं वालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री। एल० डी० इस्टीट्यूट
ऑफ इडोलोजी द्वारा 'लक्षणावली' के समानान्तर वर्षों मे प्रकाशित 'प्राकृत व्यक्ति वाचक सज्ञा कोश'२३ भी एक महत्वपूर्ण सदर्भ है । यह अग्रेजी मे है, और श्वेताम्बर सामग्री-स्रोतो पर आधृत है। इसकी सकलना मे प्रकाशित-अप्रकाशित सभी प्राकृत ग्रन्थो का उपयोग किया गया है । सकलनकर्ता हैं डा० मोहनलाल मेहता और ऋषभ के० चन्द्रा। 'श्रमण' मासिक वाराणसी ने जनवरी १९७६ के अक मे 'जनागम-पदानुक्रम' कोश का प्रकाशन आरभ किया है। इसके सपदिक है डॉ० मोहनलाल मेहता, जमनालाल जैन ।२४
आगम-शोध-कार्य के वाचना-प्रमुख आचार्य श्री तुलसी तथा संपादक और विवेचक, आगमति मुनि श्री नथमलजी के निर्देशन मे जैन आगम कोश निर्माणाधीन है। इसमे शब्दो के साथ-साथ आगम-ग्रन्थो के सन्दर्भ भी रहे। छह आगमो का कार्य संपन्न हो चुका है। यह जैन विश्व भारती, लाडणू द्वारा प्रकाश्य है।
७ नीचे प्रकाशन-वर्प-क्रम से कोशो तथा कोशकारो की सारणी प्रस्तुत है वर्ष कोश-नाम भाग कोशकार प्रकाशक +१९१३ अभिवानराजेन्द्र १ ७ राजेन्द्रसूरि श्री अभिधान राजेन्द्र
કાર્યાનય, સતનામ १६१८ जन जैम डिक्शनरी जे० एल० जैनी आरा १६२३ एन इलस्ट्रेटेड १ ५ रतनचन्द्रजी अर्द्धमागधी डिक्श
शतावधानी नरी (१९२३-३२)
अजमेर-बबई १९२४ वृहज्जन शार्णव १,२ बी० एल० जैन (१६२४-३४)
शीतलप्रसाद बारावकी-सूरत १९५४ अल्प परिचित १ आनन्दसागरसूरि વૈદ્ધાત્તિ શબ્દકોશ
सूरत
+ इस कोश का संपादन १८६० ई० में आरभ हुआ और समापन १९०३ ई० मे। इसका
प्रथम भाग १६१३ और द्वितीय १६१० मे प्रकाशित हुआ, सपूर्ण कोश १९१० से १९३४ ई० की समयावधि में प्रकाशित हुआ। राजेन्द्रसूरिजी ने १८६६ ई० मे पाइयसहि ' का संपादन भी किया था, जो अप्रकाशित है।