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________________ आधुनिक जैन कोश ग्रन्थो का मूल्यांकन ३६५ इस द्वितीय भाग मे विशेष रूप से अपभ्रंश ग्रंथो की १२२ प्रशस्तिया दी गयी है, जो साहित्य और इतिहास के साथ ही सामाजिक और धार्मिक रीति रिवाज पर अच्छा प्रकाश डालती है । इन प्रशस्तियों को हस्तलिखित ग्रथो पर से उद्धृत किया गया है और अधिकाश अप्रकाशित ग्रंथो को ही सम्मिलित किया गया है । इसमे कुछ उपयोगी परिशिष्ट भी जोड दिए गये है जिनमे भौगोलिक ग्राम, नगर, नाम, सघ, गण, गच्छ, राजा आदि को अकारादिक्रम से रखा गया है । लगभग १५० पृष्ठ की सपादक की प्रस्तावना शोध की दृष्टि से और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । इसका प्रकाशन वीरसेवा मंदिर, देहली से सन् १९६३ मे हुआ । एक अन्य प्रशस्ति संग्रह श्री के० भुजबली शास्त्री के सपादन मे जैन सिद्धान्त भवन आरा से वि०स० १९०६ मे प्रकाशित हुआ था । इसमे शास्त्री जी ने ३६ ग्रथकारों की प्रशस्तिया दी है और साथ ही हिन्दी मे उनका सक्षिप्त साराश भी दिया है । ६ लेश्या-कोश इसके संपादक श्री मोहनलाल बाठिया और श्रीचन्द चोरडिया है और इसके प्रकाशन-कार्य का गुरुतर भार श्री बाठिया ने उठाया है, जो कलकत्ता से सन् १९६६ मे प्रकाशित हुआ। ये दोनो विद्वान् जैनदर्शन और साहित्य के संशोधक रहे है । सम्पादको ने सपूर्ण जैन वाड्मय को सारभौमिक दशमलव वर्गीकरण पद्धति के अनुसार १०० वर्गो मे विभक्त किया और आवश्यकता के अनुसार उसे यत्र-तत्र परिवर्तित भी किया । मूल विषयो मे से अनेक विषयों के उपविषयो की भी सूचि इसमे सन्निहित है। इसके सम्पादन मे तीन बातो को आधार माना गया है- ( १ ) पाठो का मिलान (२) विपय के उपविषयों का वर्गीकरण तथा ( ३ ) हिन्दी अनुवाद | मूल पाठ को स्पष्ट करने के लिए सम्पादको ने टीकाकारो का भी आधार लिया है । इस सकलन का काम आगम ग्रंथो तक ही सीमित रखा गया है । फिर भी सपादन, वर्गीकरण तथा अनुवाद के कार्य मे नियुक्ति, चूर्णि, वृत्ति, भाष्य आदि टीकाओ का तथा सिद्धान्त ग्रंथो का भी ययास्थान उपयोग हुआ है । दिगम्बर ग्रथो का इसमे उल्लेख नही किया जा सका । सम्पादक ने दिगम्बर लेश्या कोश को पृथक् रूप से प्रकाशित करने का सुझाव दिया है। कोश-निर्माण मे ४३ प्रयोका उपयोग किया गया है । ७ क्रिया-कोश इसके भी सपादक श्री मोहनलाल बाठिया और श्री श्रीचन्द चोरडिया है और प्रकाशन किया है जैनदर्शन सीमिति कलकत्ता ने सन् १९६९ मे । श्री बाठिया जैनदर्शन के सूक्ष्म विद्वान् है । उन्होने जैन विषय-कोश की एक लम्बी परिकल्पना बनाई थी और उसी के अन्तर्गत यह द्वितीय कोश क्रिया-कोश के नाम से प्रसिद्ध
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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