________________
आधुनिक जैन कोश-ग्रन्थो का मूल्यांकन ३६१ नही था। अनुसधाता को एक ही स्थान पर सम्बद्ध विषय की जानकारी मिल जाती है । इस दृष्टि से उसका विशेष उपयोग कहा जा सकता है। ____ विजयराजेन्द्रसूरि ने एक और कोश लिखा था जिसका नाम उन्होने शब्दाबुधि कोश रखा था परन्तु इसका प्रकाशन नहीं हो सका। इसमे लेखक ने अकारादि क्रम से प्राकृत शब्दो का संग्रह किया था और साथ ही सस्कृत और हिन्दी अनुवाद दिया था किन्तु अभिधान राजेन्द्र कोश की तरह शब्दो पर व्याख्या नहीं की गई। यह कोश कदाचित अधिक उपयोगी हो सकता था परन्तु न जाने आज वह पाडुलिपि के रूप मे कहा पडा होगा।
२ अर्धमागधीकोश
इस कोश के रचयिता मुनि रत्नचन्द्र लीम्बडा-सम्प्रदाय के स्थानकवासी साधु थे। उन्होने जन-जनेत र ग्रथो का अध्ययन कर बहुश्रुत व्यक्तित्व प्राप्त किया था। उनके द्वारा कुछ और भी ग्रथो की रचना हुई है जिनमे अजरामरस्तान (स० १९६६), श्रावकन्नतपत्रिका (स० १९७०), कर्तव्यकामुदी (स० १९७०), भावनाशतक (स० १९७२), रत्नधर्मालकार (स० १६७३), प्राकृत पाठमाला (स० १६८०), प्रस्तर रत्नावली (स० १९८१), जनदर्शन मीमासा (स० १९८३), रेवतीदान समालोचना (स० १६६१), जनसिद्धान्त कौमुदी (स० १६६४) - अर्धमागधी का सटीक व्याकरण प्रमुख है। । यह अर्धमागधी कोश मूलत गुजराती मे लिखा गया और उसका हिन्दी तथा अग्रेजी रूपातर प्रीतमलाल कच्छी आदि अन्य विद्वानो से कराया गया। इस कोश के रचने मे लेखक को मुनि उत्तमचद जी, उपाध्याय आत्माराम जी, मुनि माधवजी तथा मुनि देवचन्द्रजी का भी सहयोग मिला है। डॉ० वनारसीदास जी एव डॉ० वेलवेलकर ने भी इसमे सहयोग दिया। इन सभी विद्वानो के सहयोग से प्रस्तुत की। इस रूप मे प्रकाशित हो सका है। डॉ० बूलर की विस्तृत प्रस्तावना और सरदारमल मडारी की विस्तृत अंग्रेजी भूमिका के साथ यह कोश पार भागो मे इस प्रकार प्रकाशित हुआ
भाग १ 'अ' वर्ण पृ० ५१२ प्रकाशन काल सन् १६२३ भाग २ 'अ' से 'ण' वर्ण तक पृ० १००२
॥ सन् १९२७ भाग ३ 'त' से 'ब' वर्ण तक लगभग पृ० १०००,, , सन् १९२६ भाग ४ 'भ' से ह वर्ण तक पृ० १०१५
, सन् १९३२
(परिशिष्ट सहित) इस प्रकार लगभग ३६०० पृष्ठो मे यह कोश समाप्त हो जाता है। इसे हम ५च भाषा कोश कह सकते हैं क्योकि यह प्राकृत के साथ ही सस्कृत गुजराती हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओ मे रूपातरित हुआ है । लगभग सभी शब्दो के साथ यथावश्यक