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३८६ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
६८ इपिग्राफिका इण्डिा , ८,३५६, ५,३२ ६६ वेदप्रातिशाज्य, १४,३८ १०० जेकब, पोकरनाग आल्टइण्डिया ग्रानातिका, मा० १,१८६६, पृ० ३१ १०१ डा० रामगोपाल वैदिक व्याकरण, प्रथम भाग, दिल्ली, १९६५, ०५ से उदृत । १०२ द्रष्टव्य है प्रिआर्यन एण्ड प्रि-द्रवटियन, १०६ १०३ डा० मोतीचन्द्र मार्थवाह, पृ० ४४ १०४ मिश्र, टा० हरिमोह्न विदीय भारत की भाषा-म्यिति', परिषद्-पतिका, वर्ष ८,
क ३४, मापा-सवक्षणाक, पृ०५२ से ज्दत १०५ 'अथ यादान यार्या न मिचिदय याच रति म्लेच्छास्तु कस्मिाश्चत् प्रयुज्यन्ते, यथा--पिक-नेम सत-तामरस आदि दाते५ मन्दह ।'
भवरमाप्य, म०१ पा० ३, सू० १०, म०५ १०६ वर्मा, सिद्धवर द फोनेटिका आजन्म माफ इण्डियन ग्रामेरियन्स, दिल्ली, १९६१,
पृ० ५० १०७ बाल्मडोर्फ, लुडविग 'द ओरिजन भाव द न्यू-३०टो-आर्यन स्पीन', अनु० एम०एन०
घोपाल, जनल ऑन द ओरियन्टल इस्टीट्यूट, बडोदा, जिल्द १०, म० २, दि.०
१९६०, पृ० १३२.३३ १०८ टनर, आर०एल० ए कम्पेरेटिव डिक्शनरी ऑव दण्डो आर्यन लग्वेजेज, १९६६,
पृ०४७५ १०९ जैन, डा० जगदीशचन्द्र जैन आगम माहित्य में भारतीय समाज, परिशिष्ट ३ ११० पटव्य है-प्रोमीडिस ऑन द सेमिनार ऑव स्कालर्स इन प्राकृत एण्ड पालिस्टडीज, मग
यूनिवर्सिटी, वोधगया, १९७१, पृ०६१ १११ शास्त्री, डा. देवेन्द्रकुमार 'भगवान महावीर की मूल वाणी का मापा-वज्ञानिक महत्त्व',
द विक्रम जर्नल ऑव द विक्रम-युनिवर्सिटी, उज्जैन, जिल्द १८, स० २.४, मई-नव०
१९७४, पृ० १५५-५६ ११२ शास्त्री, डा० देवेन्द्रकुमार कन्ट्रीव्युशन ऑव अप ३५ टू इण्डियन लग्वेजेज', कन्ट्रीव्युशन
ऑव जैनिज्म टु इण्डियन कल्पर, १९७५, पृ० ७६