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३८४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
५४ वीतरागो जिन प्रोक्तो जिनो नारायण स्मृत ।
कन्दर्पहा जिनरचय जिन सामान्यकेवली ॥६२॥ ५५ कासनीवाल, डा० कस्तूरचन्द (स.) राजस्थान के जैन शास्त्र-भाटारो की ग्रन्य सूची,
भाग २, पृ० २६७ ५६ शास्ती, डा० नेमिचन्द्र जैन 'जन कोश-साहित्य', आचार्य भिक्षु स्मृति-ग्रन्य, पृ० १६६ ५७ मुनि जिनविजय 'उक्तिरत्नाकर' की प्रस्तावना, पृ०६ ५८ आचार्य भिक्षु स्मृति-ग्रन्थ, पृ० १६६ ५६ वही, पृ० १६६ ६० अफेजत, थ्योडर (स.) केटालोगम केटेलोगोरम, भा० १,१९६२, जर्मनी, प० ६३३ ६१ विक्कमकालस्स गए अउणत्तीसुत्तर सहस्मम्मि ।
मालवनरिदधाडीए लडिए मन्नखेडम्मि।। धारानयरीए परिट्टिएण मग्गे ठिाए अणज्जे ।
कज्जे कणिपहिणीए 'सुन्दरी' नामधिज्जाए । अन्तिम प्रशस्ति ६२ कइमो अध जकिया कुसल त्ति पयाणमतिमा पण्णा ।
नामम्मि जस्स कम सो तेणेसा विरइया देसी ॥ वही ६३. 'पोयो वहण सवरा य किराया'-पाइयलच्छी० २७४ ६४ जे लक्खणे ण सिद्धा ण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु ।।
णय गणलक्षणासत्तिसमका ते इह णिवद्धा ॥ देशी० १,३ ६५ देसविसेसपसिद्धी भण्णमाणा अणन्तया हुति ।
तम्हा अणाइपाइपयट्टमासाविससओ देसी ।। वही, १,४ ६६ वनर्जी, मुरलीधर देशीनाममाला की भूमिका, १० ३३ ६७ परो, टी० बुलेटिन ऑव द स्कूल ऑव ओरियन्टल एण्ड अफ्रीकन स्टडीज, लन्दन,
जिल्द १२ पृ० ३६५ ६८ नियन् रत्ना एन० सिम फोरिन लोन वस इन पुप्पदन्ताज अपभ्रश', 'भारतीय
विद्या', जिल्द २५, स० १-२, पृ० २७ ६६ वही, पृ० २८ ७० टर्नर, आर०एल० ए कम्पेरेटिव डिक्शनरी ऑप द इण्डो-आर्यन लैंग्वेजेज, लन्दन,
१९६६, पृ० १३२ ७१ वही पृ० १७१ ७२ द्रष्ट०५ है भारतीय विधा', जिल्द २५, स० १-२, पृ० २६ ७३ वरो, टी० बुलेटिन ऑप द स्कूल ऑप ओरियन्टल एण्ड अफ्रीकन स्टडीज, लन्दन,
जिल्द १२, पृ० ३७६ ७४ टनर, आर०एल० ए कम्पेरेटिव डिक्शनरी ऑप द इण्डो-आर्यन लवजेज, लन्दन,
१६६६, पृ० २५६ ७५ महाकवि पुष्पदन्त कृत महापुराण, ३,१४,११ । ७६ 'देशीनाममाला' के परिशिष्ट मे सलग्न शव्दकोप, पृ० ४७ ७७ टनर, आर०एल० एम्परेटिव डिक्शनरी ऑन द इण्डो-आर्यन लैंग्वेजेज, लन्दन १९६६,
पृ० ४७५ ७८ श्रियन, डा० रत्ना 'ए स्टडी नाव देश्य वर्ड्स फ्रॉम द महापुराण ऑप पुष्पदन्त', द
जनल ऑव द यूनिवमिटी ऑव वाम्बे, जिल्द ३१, भाग २, सित०, १९६२, पृ० १०३