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३६८ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
रूप बनता है, यह बहुत अच्छी तरह से इस रचना मे समझाया गया है। इस ग्रन्थ मे केवल प्राचीन कौशली भाषा का नमूना ही हमे नही मिलता है, अपितु व्याकरणशास्त्र विषयक कई अन्य महत्व की बातो को भी इसमे उल्लेख है।५
उक्तिरत्नाकर
'उक्तिरत्नाकर' के रचयिता साधु सुन्दरगाणि १७वी शताब्दी के जैन विद्वान् थे। इसमे देश्यभापा के सभी प्रकार के उक्ति मूलक प्रयोगो का सग्रह मिलता है। जैसे 'उक्तिव्यक्तिप्रकरण' का दूसरा नाम 'प्रयोग प्रकाश' है, वैसे ही इसका दूसरा नाम 'औक्तिकपद' भी है । देश्य शब्दो के सस्कृत-रूप जानने के लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्य है । कुछ देश्य शब्द और उनके सस्कृत-रूप इस प्रकार है ___असोई (उपश्रुति ), पोज (चौद्यम्), छावडउ (शावक), रीसालू (ईर्ष्यालु), माखण (म्रक्षण), हिडकी (हिकका),पान्ही (पाणि), हेरू (हैरिक) पाहू (प्रतिभू), कारू (कार), खलहाण (खलधान), पासी (पाशिका), भाठ (भ्राष्ट्र), तूरी (तुवरी), नीमी (नीवी) आदि । इनमे से कुछ शब्द ऐसे हैं जिनके सस्कृत रूप होने से अर्य-निर्धारण मे सुगमता हो जाती है। जैसे ध्रोव (दूर्वा), खूणउ (कोगक), सीख (शीतरक्षिका), ईडउ (अण्डक), धाहडी (धातकी) आदि । किन्तु कुछ शब्द ऐसे है कि उन से ठीक अर्थ समझ मे नही आत।। जैसा कि तगोटी (तगपटी), खीचडी (क्षिप्रचटिका), राख (रक्षा), बूब (बुम्बा), गोफाटी (गोफणी) इत्यादि । इसमे सस्कृत के अनेक गडे हुए शब्द भी मिलते हैं। उदाहरणार्थ गादी (गव्दिका), मिठाई (मृष्टादिका), सूखडी (सुखादिका), पडी (वटिका), कडुछउ (कटुच्छक), वानी, वानगी (वणिका), टार (टार), डर (दर), टसर (तसर ) तथा लाच (लचा) आदि। ___आधुनिक युग मे प्राच्य विद्याओ के अध्ययन के परिणामस्वरूप भारतीय भाषाओ तथा साहित्य के समानान्तर प्राकृत का भी अध्ययन होने लगा। किन्तु सस्कृत की अपेक्षा प्राकृत की ओर बहुत वाद मे विद्वानो की दृष्टि पहुच पायी। सस्कृत-नाटको के प्राकृत अशो को देख कर वहुत समय तक केवल यही अनुमान किया जाता रहा कि यह सस्कृत की कोई उपभापा रही होगी। सर्वप्रथम प्राकृत भापा और साहित्य की ओर जर्मन विद्वानो का व्यान आकर्षित हुआ। उन्नीसवी शताब्दी के प्रथम चरण मे ही जर्मनी मे प्राकृत भाषा का अध्ययन प्रारम्भ हो गया था। सर्वप्रथम प्राकृत भाषा पर होएफर ने 'डे प्राकृत डिअलेक्टो लिब्रिदुओ' (१८३६ ई०)निवन्ध मे अपने विचार प्रकट किए थे। लगभग इसी समय लॉस्सन और ऑल्सडोर्फ ने प्राकृत भाषा व वोलियो के सम्बन्ध मे महत्त्वपूर्ण निवन्ध लिख कर शोध व अनुसन्धान किया था। प्राकृत भाषा का परिचय मिलते ही उनका महत्त्व जान कर भाषाविदो का तुरन्त ध्यान प्राकृत के गन्दकोपो की ओर गया।