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३५८ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
मकान । मूल मे यह शब्द द्राविड 'कुट्ट' से निकला है। पालि मे यह 'कूट' हे और प्राकृत मे 'कूड' है । इसका अर्थ लोहे की हथोडी हे । सिन्धी मे इसी अर्थ मे 'कुलु' शब्द प्रचलित है। इसके अतिरिक्त अन्य अर्थों में यह शब्द परिलक्षित नही होता। 'कुट' का अर्थ 'कोट' इसलिए शब्दकोशो मे आ गया, क्योकि प्राकृतबोलियो मे 'कुट' और 'कोड' दोनो शब्द प्रचलित रहे है। घट और गेह अर्थ के सम्बन्ध मे यह ज्ञातव्य है कि ये दोनो ही सादृश्य से सम्बन्वित है । सस्कृत मे अनेक शब्दो का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ । आचार्य हेमचन्द्र मे यह प्रकृति विशेष रूप से लक्षित होती है । 'अनेकार्थसग्रह' मे भी यही प्रवृत्ति भली-भाति देखी जा सकती है। यही आगे चलकर आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओ तथा वोलियो मे कुट, कूटनी, कुहा, कूटा आदि शब्दो मे धोतित होती है । यह विषय अत्यन्त रोचक तथा शोव-अनुसन्धान का है। इससे भारतीय आर्यभाषाओ की पुननिर्माण की प्रक्रिया में कुछ नवीन सकेत भी उपलब्ध हो सकते है।
નિધશેષા
आचार्य हेमचन्द्र कृत 'निघण्टुशेप' शब्दकोश-ग्रन्थो मे एक विलक्षण रचना है। क्योकि इसमे एकार्थक और अनेकार्यक दोनो प्रकार के देशी शब्दो का संग्रह किया गया है। स्वयं उन्होने इस बात का उल्लेख किया है कि जो शब्द शेष रह गए है, उनका यहा समुच्चय किया गया है । " डॉ० दुल्हर के अनुसार यह एक श्रेष्ठ वनस्पतिकोश है। उनका यह कथन तथ्यपूर्ण है । क्योकि यह कोश छह काण्डो मे विभक्त है। प्रथम वृक्षकाण्ड है, द्वितीय गुल्मकाण्ड, तृतीय लताकाण्ड, चतुर्थ शाककाण्ड, पचम तृणकाण्ड और ५०० धान्यकाण्ड है। इस प्रकार यह सम्पूर्ण कोश स्वतन्त्र रूप से एक वनस्पतिकोश है जो 'अभिवानचिन्तामणि' कापूरक प्रतीत होता है। 'अभिधानचिन्तामणि' और 'अनेकार्थसह' मे आ० हेमचन्द्र ने अपने पूर्ववर्ती जिन अनेकार्थक कोश मे उल्लिखित औषधियो तथा वृक्षो आदि के नाम छोड दिए थे, उनका पृथक रूप से इस कोश मे सकलन किया है । यह वास्तव मे उनकी ही सूझ-बूझ है । आयुर्वेद के निघण्टुओ के अतिरिक्त अन्य इस प्रकार के को उपलब्ध नही होते । अत आयुर्वेद के निघण्टु ग्रन्थो की ५२-५॥ मे यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इसका कारण यह है कि यह कोश कुल ३९६ ५लोको मे निबद्ध होने पर भी वनस्पति-जगत् की लगभग सभी वस्तुओ का उनके पर्यायवाची नामो के साथ अभिधान प्रस्तुत करता है । यद्यपि विश्वप्रकाशकोश' तथा 'शिवकोश' एव
राजनिव' आदि कोशो मे उल्लिखित सभी अभिधानो का सकलन इस छोटे-से कोश मे नहीं है, किन्तु कई अप्रसिद्ध शब्दो की जानकारी के लिए यह अत्यन्त सहायक है । जैसे कि 'गोपकन्या' का अर्थ सारिवा किया गया है। यह अर्थ शिवकोष'