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३५४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
४ खल्ल पर्ममयी (अभि० १०२५)। हिन्दी में खाल'। खल्ला
(देशी० २,६६)। ५ गेदुक गेद (अभि० ६८६) । हिन्दी मे गेद', बज-बुन्देली मे गद। ६ तारि तलवार (अभि० ७८२) । ब्रज, बुन्देली, गुजराती मे
'तरवार'। ७ चालनी चलनी (अभि० १०१८) । आधुनिक भारतीय आर्य मापाओ
में चलनी। ८ खटी खजी मिट्टी (अभि० १०३७)। राजस्थानी 'खडी', गला,
उडिया मे 'खडी', मराठी में 'खडी' और गुजराती 'खडी' । ६ पुरुल भ्रमरालक (अभि० ५६६) । प्राकृत कुरुल (लट), जूनी
गुजराती मे 'कुरुल', मराठी में 'कुरुल'।" द्रविड भाषाओ मे 'कुरुल'। १० तम्बा गाय (अभि० १२६६) । तवा-गो (देशीनाममाला ५,१)। ११ फुल्ल फूला हुआ (अभि० ११२७) । पालि-प्राकृत "फुल्ल' । आधुनिक
भारतीय आर्यभापाओ मे 'फूल' अर्थ है।" १२ वप्पीह पपीहा (अभि० १३२६) । वप्पीह (देशीनाममाला, ६,६०)। १३ पुत्तिका पतगिका (श्वेत चोटी, अभि० १२१४) । कानड 'पुत्तु' तेलुगू ____ पट्ट', परजी (द्राविडी) 'पुटकल'।
इनके अतिरिक्त कई अन्य ऐसे शब्द भी परिलक्षित होते है जिनका निश्चित पता नही है, ५२ वे देशी ही प्रतीत होते है। इन शब्दो मे कुछ ये है
(१) पोटा, (२) वोटा, (३) चुन्दी, (४) पट्टी, (५) पोटी इत्यादि । पाठ इस प्रकार है
सा वारमुख्याथ चुन्दी कुट्टनी शम्भली समा ।
पोटा वोटा च चेटी च, दासी च कुटहारिका । अभि०, ५३३-३४ इसी प्रकार से सस्कृत के अन्य शब्दकोशो की भाँति इसमे भी अन्य भाषाओ के परम्परागत शब्दो की भी उचित रूप से सन्निवेश परिलक्षित होता है । अतएव कई दृष्टियो से इस कोश का अध्ययन स्वतन्त्र रूप से शोध खोज का महान कार्य है। अभी तक इस दिशा मे कोई कार्य नही किया गया है। अनेकार्थकसग्रह ___आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि का यह कोश 'अभिधान चिन्तामणि' का पूरक है। क्योकि 'अभिधानचिन्तामणि' मे पर्यायवाची शब्दो का सकलन है और इसमे एक शब्द के अनेक अर्थों का पालन किया गया है। यह कोश सात काण्डो मे निबद्ध है, जिनमें कुल १६३१ ५ोक है। इस कोश में कई नवीन शब्द मिलते है, जो मदिनी' में नही पाए जात । उनमे से कुछ ये है