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आचार्य श्री कालूगणी व्यक्तित्व एवं कृतित्व . ७ मुनि कालू के जीवन-निर्माण मे छोगाजी का भी बहुत बड़ा योग रहा है । वे दीक्षित होने के बाद भी मुनि कालू के जीवन-निर्माण का पूरा ध्यान रखती थी। मुनि कालू भी उनके प्रति बहुत कृतज्ञता का भाव रखते थे। एक बार मुनि कालू किसी मुनि के पास पाठ-वाचन कर रहे थे। उस समय साध्वी छोगाजी वहा आ गई। उन्हें देखते ही मुनि कालू उनके पास जाकर बोले मैं बात नहीं कर रहा था। मैं उनसे पाठ-वाचन कर रहा था।
सुनि कालू के जीवन को प्रभावित करने वाला तीसरा व्यक्तित्व था मुनि मगन । मुनि कालू दीक्षित होते ही मुनि मगन से अभिन्न हो गए। उनकी अभिन्नता निरन्तर प्रगाढ होती गई और जीवन भर उनमे कोई अन्तर नही आया । दो शरीर और एक आत्मा यह अनुभूति सबको होती रही । मुनि मगन बहुत प्रबुद्ध और विवेकति थे। उनका परामर्श मुनि कालू का पथ-दर्शन करता रहा।
निमित्त सहायक ही होते हैं, मूल होता है उपादान । जिसमे योग्यता का उपादान होता है और अनुकूल निमित्त मिल जाते है, तब ज्योति प्रज्वलित हो जाती है।
मुनि कालू की योग्यता पर मघवा ने मुहर छाप लगा दी थी। मघवागणी प्रात काल प्रवचन करते थे। दोपहर और मध्याह्न मे दूसरे साधु व्याख्यान देते थे। एक दिन उन सबने व्याख्यान देने मे अपनी असमर्थता प्रकट की। मधवागणी बहुत कोमल प्रकृति के थे। उन्होने उन साधुओ की स्वच्छता को सह लिया। उन्होने कालू से कहा 'तुम व्याख्यान दोगे ?' कालू बोले-'गुरुदेव ! मैं दे सकता हू, पर मेरी कठिनाई है कि मुझे गीतिका की लय नही आती । न मुझे पदो का अर्थ ही आता है, फिर मैं कैसे व्याख्यान करूगा ? कसे गाऊगा? मधवा ने कहा'लय मैं सिखा दूगा। अर्थ मैं बता दूगा।' 'गुरुदेव । तब मै व्याख्यान दे दूगा।'
और मुनि कालू व्याख्यान देने लगे। अपनी छोटी अवस्था मे ही मुनि कालू मधवागणी के लिए सहारा बन गए थे।
विकास का नया आयाम
स० १९६० मे डालगणी वीदासर मे विराज रहे थे । यह कस्वा ठाकुर हुकम सिंहजी के आधीन था । उनको सस्कृत के अध्ययन मे रुचि थी। उन्होने हालगणी के पास एक सस्कृत श्लोक भेजा और उसका अर्थ जानना चाहा। डालगणी ने वह श्लोक मुनि कालू को दिया। वह यह है
"दोषास्वामरुणोदये रतिमितस्तन्वीरयात शिव, यामममितथाः फलान्यदशुभ त्वय्यादृतेऽङ्ग च का ।