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________________ ३०० संस्कृत-प्राकृत व्याक' और कोश की परम्परा -ए - | -अड | -ए -एन-अन्ति। -अण पुरुप अन्य एकवचन | -ए -ए बहुवचन - | -ए -अत ___ आधुनिक भारतीय भाषाओ के वर्तमान आनायक स्पो का विकास भी मध्यकालीन भारतीय क्रिया रूपो से हुआ है। ___ अपभ्र ण मे भविष्यकालिक पो की रचना मे धातु मे विभक्ति लगने के पूर्व 'इस्स' अथवा 'इह' प्रत्यय जुटता था। गुजराती -करी, -करिशु, को-आदि रूपो से 'इसस' का तथा हिन्दी की ब्रज आदि बोलियो के -करिहों -करिह आदि मे 'इह' का प्रभाव विद्यमान है। ७ क्रिया के कृदन्तीय रूपो का प्रयोग प्राचीन भारतीय अर्थ भापाकाल मे भूतकालिक रचना के कई प्रकार थे। लड़ से असम्पन्न भूत, लुड० से मामान्य भूत तथा लिट् से सम्पन्न भूतकाल की रचना होती थी। उदा० गम् धातु के रूप अगच्छत्, अगमत् एव जगाम बनते थे । इनमे क्रिया ५ विद्यमान था। प्राकृत अपघ्र श युग मे इनके बदले भूतकाल भावे या कर्मणि-कृदन्त 'गत' लगाकर बनाया जाने लगा। आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओ मे कर्मणि कृदन्त रूप तो विद्यमान है ही, कृदन्तीय रूपो से काल रचना होने लगी है। अधिकाश आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओ मे वर्तमान कालिक कृदन्तीय रूप मे पुरुप एव लिग वाचक प्रत्यय लगाकर काल रचना होती है। यथा--हिन्दी -करता। गुजराती -करत । बगला –करित। मराठी- करित । उडिया करन्त। इसी प्रकार भूतकालिक कृदन्तीय रूपो से भी कालरचना सम्पन्न होती है। अपभ्र श मे भूतकालिक कृदन्त रू५ विशेषणात्मक रूप मे पूर्ण क्रिया के स्थान मे भी व्यवहृत होने लगे थे। आधुनिक भारतीय आर्य भापाओ मे हिन्दी गया गुजराती लीधु जैसे रू५ वर्तमान है। ___ आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओ मे से वगला, उडिया, असमिया, भोजपुरी मैथिली, मराठी आदि मे भूतकालिक कृदन्त प्रत्यय 'ल' जुडता है। यथा बगला गेल, होइल, मराठी गेलो, गेलास, भोजपुरी मारली, मारलास । इस सम्बन्ध मे यह उल्लेखनीय है कि इस भूतकालिक कृदन्त प्रत्यय का प्रयोग परवर्ती अपभ्र श मे हुआ है। राउलवेल की भाषा मे इसका प्रयोग देखा जा सकता है। ८ क्रियाओं मे लिंगभेद - अपभ्र श मे कृदन्तीय रूपी मे लिगभेद किया जाता था। हिन्दी जैसी भाषाओ मे क्रियाओ मे लिंगभेद का कारण अपभ्रश के कृदन्तीय रूपो का क्रिया रूपो मे प्रयोग है । कृदन्त रूपो को क्रिया रूपो मे अपनाने के कारण
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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