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प्राकृत एवं अपभ्रंश का आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं पर प्रभाव २९७
मे अस्पष्टता आने लगी होगी। कारको के अर्थों को व्यक्त करने के लिए इसी कारण अपभ्र श मे शब्द के वैभक्तिक रूप के पश्चात् अलग से शब्दो अथवा शब्दाशो का प्रयोग आरम्भ हो गया। यद्यपि सस्कृत मे भी रामस्य कृते' तथा प्राकृत मे रामस्य के रक धरम्' जैसे प्रयोग मिल जाते है तयापि इतना निश्चित है कि अपभ्र श मे परसर्गों की सुनिश्चित रूप से स्थिति मिलती है। करण के लिए सहु, सउ, समाणु, सम्प्रदान के लिए तेहिं, केहिं, अपादान के लिए लई, होन्तउ, ठिन, -पासिउ, सम्बन्ध के लिए तण, तणि-के रउ तथा अधिकरण के लिए मज्झे,--- मज्झि जैसे परसर्गों का बहुल प्रयोग अपभ्र श साहित्य मे हुआ है।
आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओ मे परसर्गों का विकास हुआ है। इनके प्रयोग मे सभी भाषाओ की स्थिति समान नही है। आज भी कुछ भाषाय कारकीय अर्थों को परसर्गों से नहीं अपितु शब्द के विभक्तियुक्त रूप से द्योतित कर रही है किन्तु फिर भी परसों का प्रयोग कम या अधिक सभी आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओ मे होता है। जिन भाषाओ मे विभक्तियुक्त शब्द द्वारा कारक का अर्थ व्यक्त किया जाता है उनमे भी अलग-अलग कारक के लिए अलग-अलग विभक्ति रूपो का सम्बन्ध सुनिश्चित नहीं है। यथा मराठी में एक ही कारक को व्यक्त करने के लिए अनेक विभक्तियो का प्रयोग होता है तथा एक ही विभक्ति अनेक कारको का अर्थ व्यक्त करती है। उसमे भी तृतीया के ने, नी, पचमी के -ऊन, -हून तथा षष्ठी में प्रयुक्त -पा, ची, चे, च्या आदि रूपो को परसर्ग कोटि मे रखा जा सकता है। इसी प्रकार बगला की प्रकृति भी अपेक्षाकृत सश्लिष्ट है किन्तु वहा भी दिया, द्वारा, के दिया, सगे, हइते, थेके जैसे शब्दाशी की स्थिति परसों की ही है । यथा
मन दिया पढ (मन से पढी), तोमा द्वारा हाइवे ना (तुमसे नही होगा) बहू के दिया गधाउ (बहू से रसोई वनवाओ) आमी बधु सगे देखा करित गेल (मैं मित्र से मिलने गया) पाडी हइते चलिया गेल (घर से चला गया) बाडी के चलिया गेल ( , , )।१
गुजराती मे भी सम्प्रदान मे 'माटे' तया सम्बन्ध के लिए 'ना', 'नी' का प्रयोग होता है । पजावी मे भी सम्बन्ध मे 'दा', 'दी' का प्रयोग होता है।
परसों के प्रयोग के सम्बन्ध मे हिन्दी की स्थिति अधिक स्पष्ट है। हिन्दी मे सज्ञा शब्दो मे कारकीय अर्थों को विश्लिष्ट प्रकृति के परसों द्वारा ही व्यक्त किया जाता है।
हिन्दी मे परसों का विकास आरम्भ से ही अधिक हुआ। हिन्दी के आदिकालीन साहित्य मे ही विभिन्न कारकीय रूपो को सम्पन्न करने के लिए परसों