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________________ शौरसेनी आगम साहित्य की भाषा का मूल्याकन २८१ ६ भुवो भ ४,२६६) भवति –भोदि, होदि, भुवदि, हुवदि, भवदि, हदि __ आदि। १० (क्त्व इय दूणौ ४,२७१) भूत्वा-- भविय, भोदूण, हविय, होदूण, पठित्वा पढिय, पढिदण, त्वा रमिया रन्दूण आदि। ११ (कृ गमो उडुअ ४,२७२) कृत्वा, कडुअ, गडुअ, पक्षेकरिय, कारण, गत्वा गच्छिय गच्छिदूण आदि। १२ (दि रि चे चो ४,२७३) नयति –ने दि, ददाति देदि, भवति भोदि, होदि। १३ (अतो देश्च ४,२७४) आस्ते अच्छदि, अच्छदे, गच्छति गच्छदि, गच्छेदे, करोति - किज्जदि, किज्जदे आदि। १४ (भविष्यति रिस ४,२७५) भविष्यति- भविस्सिदि, करिष्यति करिस्सिदि आदि। १५ (तस्माता ४,२७८) तस्मात् ता। संस्कृत नाटको मे प्राकृत गद्याश प्राय शौरसेनी भाषा मे लिखे गए है । अश्वघोष भास और कालिदास के नाटको मे तथा इनके परवर्ती नाटको मे प्राय शौरसनी के उदाहरण दिखाई देते हैं। ___ ऊपर जा हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के सूत्र और नियम दिए गए है, प्राय वे ही नियम, उनसे मिलते-जुलते सूत्र और प्रयोग वररुचि, लक्ष्मीधर और त्रिविक्रम आदि के प्राकृत व्याकरणो मे भी पाए जाते है। दण्डी, रुद्रट और वाग्भट आदि ने भी अपने ग्रन्थो मे इस भाषा का उल्लेख किया है। भरत के नाट्यशास्त्र मे भी सौरसेनी भाषा का उल्लेख इस प्रकार उपलब्ध है 'नायिकाना सखीना च सूरसेनाविरोधिनी' अर्थात् नायिका स्त्री और उनकी सखियो के लिए सौरसेनी का प्रयोग अविरोधी है। इस प्रकार शौरसेनी या सौरसेनी भाषा की प्राचीनता और उद्गम स्थान शात हो जाने पर स्वभावत ये प्रश्न उपस्थित होते हैं (१) क्या वे सब दिगम्बर आचार्य शूरसेन देश के ही निवासी थे, जिन्होने कि अपने ग्रन्थो की रचना शौरसेनी मे की है ? । (२) यदि नही थे, तो फिर दि० कुन्दकुन्दाचार्य और नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती जैसे दक्षिण प्रान्त मे जन्मे अनेक दि० आचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थो की रचना शौरसेनी प्राकृत मे ही क्यो की? (३) अथवा इसमे रचना करने का और कोई अन्य कारण विशेष रहा है, जिससे प्रेरित होकर प्राय सभी दिगम्बर आचार्यों ने इसे अपनाया है ? उक्त प्रश्नो का समाधान करने के पूर्व यह ज्ञातव्य है कि भारतवर्ष मे उत्तर से
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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