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________________ शौरसेनी आगम-साहित्य की भाषा का मूल्यांकन पं० हीरालाल सिद्धान्ताचार्य आचार्य हेमचन्द्र ने महाराष्ट्री प्राकृत से विभिन्नता बतलाते हुए शौरसेनी प्राकृत की विशेषताओ का कुछ वर्णन अपने प्राकृत व्याकरण में किया है । परन्तु यह नाम कसे ५डा, २सका कुछ उल्लख उन्होने नहीं किया है। पड्भापाचन्द्रिकाकार ने उसका स्व९५ इस प्रकार बतलाया है शूरसेनोद्भवा भाषा शोरमेनोति गीयते' अर्थात् शूरसेन देश मे उत्पन्न हुई भाषा शौरसेनी कही जाती है । यह शूरमेन देश कौन मा है ? यह विचारणीय है । पन्नवणासून के "सात्तियमया चेदी वीतभय मिन्धुसोवीरा। महु। य सूरमेणा पावा भगीय मास पुस्विट्टा॥" 5मकी टीका करते हुए आचार्य मलय गिरि सूरसेन देश की राजधानी पावा बतलाते हैं । यथा-- "वेदिषु शुक्तिकाती, वीतमय सिन्धुपु, सौवीरेषु मथुरा, सूरसेनेपु पावा, भगिपु मास पुस्विट्टा"। इस उल्लेख के अनुसार सूरसेन की राजधानी पावा वतलाकर वे विहार प्रान्त के अन्तर्गत सूरसेन देश का होना मानते है। किन्तु नेमिचन्द्र सूरि ने अपने प्रवचनमारोद्धार गन्य मे पन्नवणासूत्र के उक्त पाठ को अविकल रूप से उद्धत किया है और उसकी टीका में श्री सिद्धसेन सूरि ने मलय गिरि की उक्त व्याख्या को 'अतिव्यवहृत' कहकर उक्त पाठ की व्याख्या इस प्रकार की है ___"शुक्तिमती नगरी चेदयो देश , वीतभय नगर सिन्धुसोवीरा जनपद , मथुरा नगरी सूरसेनाख्यो देश , पापा नगरी भड्कयो देश , मासपुरी नगरी वर्तादेश"। इसमे स्पष्ट रूप से मथुरा नगरी को सूरसेन देश की राजधानी बताया गया है। इससे यह सिद्ध है कि मथुरा के समीपवर्ती देश को शूरसेन या सूरसेन देश कहा जाता था।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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