________________
प्राकृत व्याकरण का अनुसन्धान
२४६।।
५. सस्कृत नाटको में प्रयुक्त प्राकृत बोलियो का अध्ययन
सस्कृत नाटको मे कुछ प्राकृत भाग नियमत आता है जिसे लेखक, महिला वर्ग, वाल वर्ग अथवा अन्य निम्न वर्ग से बुलवाता है। अत स्वभावत इन बोलियो मे वैविध्य मिलता है। E B Cowell ने सभवत' इस ओर सर्वप्रथम ध्यान आकर्षित किया और A short introduction of the ordinary Prakrit of the Sanskrit dramas (London, 1875) निबन्ध प्रस्तुत किया । Pischel ने कालिदास के 'शाकुन्तलम्' का सपादन करते हुए उसमे प्रयुक्त प्राकृत का विश्लेपण किया । Printz का Bhasa's Prakrits (Frankfurt, A M. 1921) तथा Luder का The fragments of Asvaghosa's Dramas (Berlin, 1911) भी उल्लेखनीय है।
Keith का Sanskrit Drama सस्कृत नाटको मे प्रयुक्त प्राकृत बोलियो का एक अच्छा अध्ययन प्रस्तुत करता है। लेखक ने लिखा है कि भास और अश्वघोष ने शौरसेनी, अर्धमागधी और मागधी का प्रयोग किया है। मृच्छकटिक मे तो यह वैविध्य और अधिक पाया जाता है। कदाचित् सर्वाधिक । कालिदास के नाटको मे माधारणत: गद्य मे शौरसेनी का और पद्य मे महाराष्ट्री का प्रयोग हुआ है। भवभूति ने शौरसेनी, विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस मे शौरसेनी और महाराष्ट्री, भट्टनारायण ने वेणीसहार मे शौरसेनी और मागधी तथा राजशेखर ने शौरसेनी का प्रयोग अपने प्राकत नाटको मे किया है। लेवी और ग्रिल का भी इस क्षत्र में योगदान रहा है। इस प्रकार पाश्चात्य विद्वानो ने प्राकृत भाषा और व्याकरणशास्त्र के विभिन्न पक्षो पर अपना अध्ययन अनुसन्धान किया है। उनका शोधकार्य आज भी एक मानदण्ड बना हुआ है।
प्राकृत भाषा और व्याकरण-शास्त्र पर शोधकार्य का सूत्रपात यद्यपि पाश्चात्य विद्वानो ने किया पर वाद मे उसे भारतीय विद्वानो ने सवारा और परिवधित-परिष्कृत किया। यहा हम ऐसे ही विद्वानो के कार्यों का मूल्याकन तीन प्रकार से करेंगे
१ प्राकृत व्याकरण-शास्त्रो का सपादन और अनुवादन । २ स्वतन्त्र व्याकरणात्मक ग्रन्थो का प्रणयन ।
३ भाषात्मक चिन्तन । १ प्राकृत व्याकरण-शास्त्रो का सपादन और अनुवादना
प्राकृत व्याकरण-शास्त्र की परम्परा का प्रारम्भ 'भरत' से माना जाता है। मार्कण्डेय ने भारत के साथ ही शाकल्य और कोहल को भी प्राकृत वैयाकरणके रूप मे उल्लेखित किया है । कहा जाता है, पाणिनि ने भी एक 'प्राकृत लक्षण' नामक अन्य लिखा था। परन्तु इनमे से कोई भी ग्रन्थ उपलब्ध नही। अत साधारणत