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२१४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
आधुनिक सम्पादन से युक्त प्राकृत-व्याकरण । यहाँ प्रयम कोटि के कुछ प्रमुख प्राकृत व्याकरण-ग्रन्थो का परिचय प्रस्तुत है।
१ अप्पयदीक्षित-प्राकृतमणिदीप :
ईसवी सन् १५५३-१६३६ के शैव विद्वान् अप्पयदीक्षित ने अनेक ग्रन्थों की रचना की है। उन्होने 'प्राकृतमणिदीप' नामका प्राकृत व्याकरण लिखा है। यह १९५४ मे मैसूर से छपा है ।५९ अप्पयदीक्षित ने कहा है कि पुष्पवननाथ, पररूचि और अप्पयज्वन ने जो व्याकरण ग्रन्थ लिखे है वे वहुत विस्तृत है। अत. सक्षेप सचिवाले पाठको के लिए मणिदीपिका लिखी गयी है। इन्होने त्रिविक्रम, हेमचन्द्र और लक्ष्मीचर का भी उल्लेख किया है। अत इनका यह व्याकरण इन्ही प्राचीन वयाकरणो के ग्रन्थो पर आधारित है। इस प्राकृतमणिदीप के सम्पादक श्रीनिवास गोपालाचार्य ने इस व्याकरण पर सस्कृत मे टिप्पणी लिखी है।
२ श्रुतसागर-औदार्यचिन्तामणि
दिगम्बर जैन मुनि श्रुतसागर ने वि० स० १५७५ मे औदाचिन्तामणि व्याकरण की रचना की थी। इसमे प्राकृत भाषा के सम्बन्ध मे छह अध्याय हैं। यह अन्य हेमचन्द्र और त्रिविक्रम के व्याकरणो से बड़ा है। किन्तु इस व्याकरण की अपूर्ण प्रति ही प्राप्त हुई है। भट्टनायस्वामिन् ने इस ग्रन्थ के तीन अध्याय विजागापट्टम से प्रकाशित किये है। श्रुतसागर ने प्राय हेमचन्द्र का ही अनुसरण किया है।
३. शुभचन्द्र-चिन्तामणि व्याकरण .
पड्भापाचक्रवर्ती शुभचन्द्रसूरि ने वि० स० १६०५ मे चिन्तामणिव्याकरण' की रचना की है। पाण्डवपुराण को प्रशस्ति मे इस व्याकरण का उल्लेख इस प्रकार हुआ है
योऽकृत सद्व्याकरण चिन्तामणिनामधेयम् । इस प्राकृत व्याकरण मे तीन अध्याय है। प्रत्येक मे पार पाद हैं। कुल मिलाकर १२२४ सूत्र हैं। इसमे हेमचन्द्र के व्याकरण के अनुसार ही प्राकृत का नियमन किया गया है।६२ चिन्तामणिन्याकरण' पर आचार्य शुभचन्द्र ने स्वीपज्ञवृत्ति भी लिखी है।
४ समसमा तवागीश-प्राकृतकल्पतरु
रामशर्मा तकवागीश भट्टाचार्य वगाल के निवासी थे। इनका समय १७वी शताब्दी माना गया है। उन्होने 'प्राकृतकल्पतरू' नाम का प्राकृत व्याकरण लिखा