________________
१४२ मत्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
(१८)
मण्डन
9૬ સારસ્વતી
देवचन्द्र ५७ मारस्वतटीका (धनसागरी) धनसागर ५८ सारस्वतमण्डनम् ५६. सारस्वतवृति
भानुचन्द्र ६० मारस्वतवृत्ति
महजकीति ६१ मारस्वतवृत्ति हर्षकीतिर ६२ सिद्धान्तचन्द्रिका टीका जिननमूरि દૂર સિદ્ધાન્ત દ્રિાવૃત્તિ जान तिलक ૬૪ નિદાન્તરત્નમ્
जिनरत्न ६५ सुबोविका
चन्द्रकीति દદ સુવોધિની
सदानन्दगणि ૬૭ સુવોધિની
, (१९) " (२१) " (२२) " (२३)
, (२४) सिद्धान्त चन्द्रिका (६)
मारस्वत (२५)
मिछातचन्द्रिका (2)
स्पचन्द्र
व्याकरण विशेष पर टीकाओ की संख्या व्याकरण
फुल टीकाएं પાણિનીય
कान्ति
सारस्वत सिद्धान्त चन्द्रिका गणपाठ व्याकरण
યો
टिप्पणी
इस पातन्त-व्याकरण को जन व्याकरण स्वीकार किया गया है। डॉ० (स्व०) नमिचन्द्र शास्त्री ने 'प्याकरणशास्त्र को जैन आचार्यों के योगदान' नामक लेख मे इस बात को सत्रमाण पुट किया है દ્રઢ મનન વિદ્યા છેસાસ્કૃતિક અવવાન”
आदर्श साहित्य सध प्रकाशन, १९७५