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१२४ : सन्मति-महावीर की निर्मल धवल धाराएँ ! आत्मा मे डुबकी लगाओगे, तो पवित्र ही नही, पवित्रतम वन जाओगे । श्रात्म-शुद्धि के लिए एक इच भी इधर-तिघर जाने की आवश्यकता नहीं है । तू जह है, वही श्रात्मा में डुबकी लगा, जहां अहिंसा और ब्रह्मचर्य की अमृत गङ्गा वह रही है। "धर्म ही जलाशय है, ब्रह्मचर्य ही शान्तिदायक तीर्थ है, आत्मा की प्रसन्न लेश्याएँ ही पवित्र घाट है, उसमे स्नान करने से आत्मा विशुद्ध, निर्मल, निर्दोष होकर परम शान्ति का अनुभव करता है । "यही सच्चा स्नान है ऋषियो का महास्नान है, जिससे महर्पि लोग परम विशुद्ध होकर सिद्धिलाभ करते है, कर्म-मल को धोकर मोक्ष प्राप्त करते है ।
Listiane
१-धम्मे हरए बमे संतितित्थे, अणाविले अत्तपसन्नलेस । जहि सिणाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइओ पजहामि दोसं ।।
-उत्तग० १२/४६ २--एय सिणारण कुसोहि दिह, महासियाणी इसिणं पसत्य । जहि सिणाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तम ठाएं पत्ते ।।
--उत्तरा० १२/४७