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हिंसा के प्रति खुला विद्रोह
वह युग यज्ञ-याग का युग था। यज्ञो मे होनेवाली वैदिको हिसा पर धर्म का रंग चढ़ाया जा रहा था । "यज्ञार्थ पशवः सृष्टा" आदि कपोल कल्पित सूत्रों के द्वारा पशु-जगत् की सृष्टि यज्ञो की सार्थकता के लिए ही हुई है- यह भ्रान्त धारणा जनता के गले उतारी जा रही थी। यज्ञीय हिंसा को स्वर्ग-प्राप्ति के सर्वश्रेष्ट साधन के रूप में मान्यता देकर हिसा को प्रोत्साहन दिया जा रहा था।
ऐसे हिसा-प्रधान वातावरण के प्रति अहिंसा के पूर्ण देवता महावीर कैसे मौन रह सकते थे ? उन्होंने हिंसा के विरोध में अपनी आवाज बुलन्द की और अपने सार्वजनिक प्रवचनो मे धर्म के नाम पर होने वाली इस घोर हिसा के प्रति खुला विद्रोह किया।