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धर्म-देशना क्यो और किस लिए ?
भगवान् महावीर केवल ज्ञान की महाज्योति पा चुके थे। कवल-बान और केवल-दर्शन को पाकर वे कृत-कृत्य हो गए थे। उनका अपना जीवन वन चुका था । अव उनके लिए कुछ करना या बनना शेष न था। वे चाहते, तो नितान्त एकान्त जीवन व्यतीत कर सकते थे-ससार से हजारो कोस परे, सर्वथा परे रहकर । परन्तु, उनका जीवन एकान्त निवृत्ति-परक-निर्माल्य नहीं था । ज्योही उन्होने कैवल्य की अक्षय निधि को पाया, तो वे प्रकाश के उस अक्षय भण्डार को बॉटने के लिए अपने एकान्त जीवन को निर्जन वन-गुफाओ मे से खीचकर मानव-समाज मे ले आए । 'सब्वजगजीवरक्खणयट्ठयाए' के अनुसार विश्वजनीन भावनाओ के लिए अपने-आप को अर्पण कर देना ही उनके