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________________ विजयनगर म राजवंश। 4 Meोसमसिंहासन पर बैठाया! रामरामकृष्णदेवकरामा मार शमशक्के संरक्षणसे तुलुश नष्ट होनेसे पप गयो। सदाधिक्का नाममात्र वासन। __जिस समय सदाशिवका गतिक हुमा इस समय बह रहा पर्वका शक्तिरहित बालक । उसके बहनोई रामरायने उसकी वापर स्था की और उसके लिये कई किले जीते थे। शासन संबाहामकी मशक्ति रामरायके हाथों में ही थी। सन् १५५२१०में जासदाशिपने साब पाक कैडाये तो रामायने उसे कैद कर लिया और सारमें केवल एकबार उसके दर्शन पाको कराने लगा। इसका स्पष्ट भई यही कि रामराय स्वयं सदाशिषके नामसे शासन करता था-सदाशिव उसके हाथों में कठपुतली था । इस प्रकार सन १५७० ई. तक सदाशिव नाम मात्रका शासक रहा था। कृष्णदेवके पश्चात जैनधर्मको रामाश्रय नहीं मिला; बपि प्रनामें वह पूर्ववत् प्रचरित म्हा! रामराय (बारविदु वंश)। रामराय मारविदु वंशका प्रथम राजा था, जिसने विजयनगर पर बांसन किया । पनाको संतुष्ट रखने के लिये उसने सदाशिवको सबा बनाये रखवा भोर फिर जब रामगय राजा बना तो किसी ने उसका विरोध नहीं किया। इसपकार रामरायसे विजयनगरके शासकोंका चोया समक्ष पाम्म हुआ। गमराव एक प्रतापी गवा बा-काके समाने श्री-की-पीया स्वारी की। पुर्तगाकी लोगोंको मी उसने ०४-०५. २-वि., ७६.
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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