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विजयन साम्राज्यका तिहास । देणाबोर विरुणायके भक्त थे। ये मेरी मठकी बन्दना करने की गये थे; परन्तु यह मप्रमाणित नहीं कि माधवाचार्य विचारण्यने उनको राज्य स्थापनाकी प्रेरणा की और उसको समृद्धिशाली बनाया।
वास्तवमें बात यह है कि हरिहरके एक प्रमुम्ब दंडनायक और सेनापतिका नाम भी माषप मा। माधवाचार्यके भक्तों ने दोनों को एक मान लिया और माधव विद्यारण्यको ही सेनापति माधव बना दिया। किन्तु यह स्पष्ट है कि दो भिन्न व्यक्ति थे। माधवाचार्य विद्यारण्य हरिहरके धर्मगुरु अवश्य थे, परन्तु उनका सम्बन्ध विजयनगरकी राज्य बस्वासे कुछ न थी। इसलिये उनके नामकी अपेक्षा विजयनगर उस समय विद्यानगर कहलाया जबकि विजयनगर राज्यको स्थापनाके पाद विद्यारण्यका सम्बंध जोड़ा गया था। विद्याकीति' नामक पुस्तकमें उल्लेख है कि विरुपाघनदेवनं विधायको तंत्रमतानुसार विजयनगरीका पुनः निर्माण कानेकी अज्ञा दी, क्योंकि वह नष्ट हो चुकी थी-यद्यपि एक समय उसका विस्तार दो योजनका था और उसकी गिनती चहे. नगरोंमें थी। हम लस्व में भी स्पष्ट है कि विजयनगर विद्यानगरके पहलेसे ही विद्यमान था। किसी कारणसे अप उसका हाम हुमा ना विधायने उसका पुनरोद्धार कराया । १-हेराम और भोमा० मा० ३ पृष्ठ ७०-७३.
- पीठेपर संपाता नगरी विण्याहूया । भाषामविस्तरता बोनसम्मिता । मतंग इति तन्मये राबते सर्वकामदः । पुरी
दिवानी अयमागता | संयोग्य सर्वतत्रापि भूयोपि नगीमिमा सम्माकिया महान महावये।' (कि. . ...)
.: . . . . -A.S. M., 1932, p. 108.