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२८] संक्षिस जैन इतिहास विजयनगर साम्राज्यका इतिहास ।
प्रथम संगम राजवंश और जैनधर्म ।
भारतकी पूर्व स्थिति। भारतवर्षकी प्राकृतिक रचना ऐसी रही है कि उत्तर भारतके निवासियों का सम्बन्ध दक्षिणके भारतियोंसे कम रह सका है। भारतका प्राचीन रूप से कुछ अटपटा था-तब उसका विस्तार अफगानिस्तानसे भी कुछ मागेतक फैला हुमा था। एक समय मगष भोर नेपालके नीचे तक समुद्रकी खाड़ी फैली हुई थी और राजपूतानामें भी समुद्रजा हिलोरे ले रहा था। उधर दक्षिण भारतमें मलय पर्वतसे पश्चिम दक्षिण में स्थलभाग मौजूद था, जो अब समुदके उदरमें समाया हुला है। उस समय द्राविड़ और मसुर नातिके मूल निवासी सारे भारतमें फैले हुये थे, जिनके अवशेष भाज भी बिलोचिस्तान, सिधु भौर दक्षिणमें चन्द्रहल्लो मादि स्थानोंर मिळते हैं। यह मूल निवासी द्राविड सर्वथा समय नहीं थे। वह धर्म कर्मको पहिचानेवाले मुसंस्कृत और सभ्य मानव थे । जैन शास्त्रोंसे स्पष्ट है कि दक्षिण भारतमें पहले-पहले म० ऋषभने बहिंसा संस्कृतिका प्रचार किया वा और उनके पुत्र कामाल दक्षिण भारतके पहले सम्राट और पहले गगर्षि हुये थे। दक्षिणके प्राचीन ग्रन्थ बोकप्पिरम् पौर सिम्प्पदिकारम् महाकाय सह ग्रंथोंसे वहां पर जैन संस्कृतिक प्राचीन बस्तिताका ताता है, जिसका समर्थन पुरातत्यसे भी होता है।
मा० १ १ और २ मोर 'मपा.' देखने।