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प्राकयन ।
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पपई । मर्दभिल्ल राजा शासन-मदमें न्यायको शुरू गये । जैन पपरमार हुआ। कालकाचार्य उसके प्रतिशोधकी भावनासे शकस्थान पहुंचे और शकशाही राजाओंको सिंधु सौगष्ट्रमें किया काये और गर्द भिल्ल राजाके अत्याचारका अन्त किया !
उपरान्त सम्राटू विक्रमादित्यका प्रभुःख सारे भारत पर एकसमान व्यःप्त हुआ। आचार्य सिद्धसेनने सम्राट् विक्रमादित्यको महिलाधर्मका पुजारी बनाया था ।
वंशके राजा मा जैनधर्मसे प्रभावित हुये थे। उत्त' भारत के गुप्तवंश के राजा लोग यद्यपि वैष्णव वर्गके श्रद्धलु थे, परन्तु वे भी जैनधर्म से प्रभावित हुए थे। दक्षिण भारत में कदम चालुक्य, राष्ट्रकूट, गंग, डोय्पल, शिलाहार, ग्ट्ट पल्लव, चेट पण्ड्य आदि राजवंशोंका बैनाचायने पथ प्रदर्शन किया था। रविवर्मा, अमोघवर्ष, नयसिंह, कुमारपाल आदि शासकों के धर्मगुरू बड़े २ जैनाचार्य थे। उनके द्वारा राज्य संचालन अहिंसा नियमोंके आधार पर किया जाता था । प्रस्तुत इतिहासके द्वितीय और तृतीय भागोंके पई खंड ग्रथोंमें हम इन सबका सप्रमाण इतिहास लिख चुके हैं। उनका यह सिंहावलोकन इस बासको स्पष्ट करनेके लिये यहां किया गया है कि बेनोंने वस्तुतः भारत के राष्ट्रीय निर्माण और राजनीतिमें एक महत्वशाली सक्रिय भाग किया है, क्योंकि कुछ लोगों की ऐसी अंति है कि जैन धर्म कभी भी राष्ट्र-प्रधान धर्म नहीं रहा है। ऐसे लोगोंको जैन इतिहासका नवकोकाम करके अपने ज्ञानका संतुलन कर लेना चाहिये ।
हमारे इतिहासके तृतीय मानके चार खंड प्रकाशित हो चुके,