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___प्राकथन । [१९ इतिहास जैनोंको भारतकी प्राचीनतम लोक ससा और धर्मके. बनुयायी ही प्रगट करते हैं।
सिंधुके पुगतसमें जैनधर्म । . __ भारतका पुगतत्व भी इसा मतका पोषक है। सिंधु उपत्यकामे मोहनजोदड़ो और इसे पांच हजार वर्ष पहलेकी मुद्रायें और मूर्तियां मिली हैं। उनका रूप. ध्यानमुद्रा, कायोत्मर्गस्थिति और उन पर भक्ति रिह ठीक वही है जोकि जैन मूर्तियोंमें मिलते हैं।' श्री रामप्रसादजी चंदाने लिखा है कि वैदिक क्रियाकांडी मतको छोड़कर शेष सब ही भारतीय ऐनिहासिल मतों में योग क मान्य सिद्धान्त रहा है। उसमें भी जैन तीरों के निकट ध्यान योगका महत्व विशेष था। उनका कार्यात्मन भासन तो निरी-निरा जैन साधना हीकी चीज है। इस मामनमें योगी बैठना नहीं. खड़ा हो गहना है। मादिपुगण (१८ वांम) में प्रथम तीर्थङ्क। ऋषम या वृषभदेवके प्रसंगमें कार्यात्म बामनका वर्णन किया गया है सिंधु
Jainism prevailed in this country long befve Brshmansim came into existence or held she field, and it is wrong to think that the Jains were originally Hindus and were subsequent y converted into Jainism.'- Hon'ble Justice Rangneckus, ut the Bombay High Court. (A. L. R. 1939, Bombay 377.)
2. "The Jains bave remained as an orgar.ised coniniunily all through the history of India from before the rise of Buddhism down to day."-Port. T. W. Rhys Davids.
२-मोइन०, मा. १, पृ. ५२-७८ मॉडर्नरिण, अगस्त १९३२ • १५६-१५१.