________________
. प्राकथन। wwwwwwwwwwwwsmmswwmommawmommam
कुछ लोगोंका ऐसा खयाल है कि वैविक तारोमेसे ऋषमदेवको लेकर जैनोंने अपने मतको प्राचीन रूप देने के लिये चौवीस तीर्थरों की मान्यता गढ़ ली है-जैन धर्म भ० पार्श्वनायसे पुराना नहीं है, किन्तु यह कोरा खयाल ही है-इसमें तथ्य कुछ नहीं है। हिन्दू भवारों में लोकके उन प्रमुख महापुरुषों को ले लिया गया है जिनका मध किसी न किसी रूसमें भारतवर्णसे या उन महापुरुषों को लोकोरकार वृत्ति ही उनकी गिनती भवतारों में करने के लिय म धारशिला मानी गई। यही कारण है कि अबतारों में मन्तिम दो बुद्ध और कति माने गये हैं '
ऋषभ जैनोंके मूल पुरुष हैं। जिम प्रकार वैदिक धर्मानुयायी होते हुए भी बुद्धको भवतारों में गिना गया, उस तरह ऋषभदेव भी वैदिक धर्मानुयायी नहीं थे और फिर भी वह अवतार मान गये, क्योंकि उन्होंने महमी लोकारका किया था, लोको मचा मत्मबोध कराया था। हिंदू पुगों यष्टन: उनको एक स्वतंत्र पाम हंसवृत्तिप्रधान धर्मका प्रतिष्ठापक कहा है। जैन भी यही कहते हैं। अतएव यह मानने के लिये कोई कारण नहीं है कि जैनियोंग ऋषभदेवका नारित्र ब्रह्मणोंस लिया भवा ऋषभदेव जैन महापुरुष नहीं थे। जिस प्रकार बौद्ध धर्मके संस्थापक भ. बुद्धको अवतार माना गया, उसी तरह जैनधर्मके संस्थापक ऋषभदेवको भी हिन्दुओंने भतार माना है। हम माम्बा बैनियों की मान्यता कि चौबीस ती हु, प्रमाणिक सिद्ध होती है।
-
१-भागवत ध२.. ८ लाक ३७-३८ ।