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प्राकथन।
बचाव अवतारमें महादको नमज्ञानका उपदेश देनका उल्लेख है। ती बार यह रूपमें मातार लेने का वर्णन है। उपांत राजा नाभिकी पसी मेरुदेवीके गर्भसे ऋषभदेके का अवतार लेनकी बात लिखी मई है। इस रूपमें उन्होंन पाम सों का बह मार्ग, जो सभी नाममियों के लिये बन्दनीय है. दिग्व या '1x अतः यह स्पष्ट है कि विशुद्ध नात्मधर्मका निरूपण, जिसमें योगनिष्ठ दिगंबर भेषकी प्रधानता है। सबसे पहिले ऋषभदेवन ही ला+को बताया था । अतः हिन्द पुराणों के मतानुसार भी ऋषभदेव ही जैनधर्मके संस्थापक सिद्ध होते हैं, + क्योंकि • मागवत' के अतिरिक्त 'ब्रह्म ण्ड' मादि हिन्दू पुगण भी इसी मतके पोषक है।'
ऋग्वेदमें ऋषम । यह बात ही नहीं कि हिन्द पुराणों में ही ऋपभावतारका वर्णन हो, बलिक ऋग्वेद में भी ऋषमका मलाल हुभा मिलता है:
"ऋषभं मासमानानां सपत्ननां विषा सहिं । हन्तारं शत्रणां कृधि विराजं गोपितं गवाम"
-ऋग्वंद १ ० ११॥१६६ निम्मन्देह बेदके इस मंत्रमें ऋभदेवको जैन तीर्थकर नहीं कहा है और वेदोंके टीकाकार सायण मादि भी उनके व्यक्तित्व पर पास नहीं बाम्ते, किन्तु वे 'ऋषम' शब्दसं एक व्यक्तिका नाम
x पूर्व. पृ.१८९, + वेद पुगणादि०, पृ. २-४ । . १-
माय .. ५. पृ. १५०, प्रमाणपुगण म. १४गलो. ५९-६१, मि . स्यादि-विशेषके लिए।