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तत्कालीन जैन साहित्य और कला। (१५१ भी थे। नोंने किका दुर्गमें मनन्तनावका मंदिर और बारसदके विजयी पार्श्वनायके मंदिरका महाद्वार बनाया। शोषरचरित, अनन्तनाथ पुराण और शिवायस्मरतन्त्र नामके तीन अन्य उसके रचे हुए मिलते हैं। मटुकवि मा दास सन् १६०० के जगमग हुए थे। यह बैन ब्रामण थे और अपने नाम के साथ जिनगणपति, गिरिनगराधीश्वा नादि विश्व लिखता था। 48: वह किसी नगरका राजा प्रगट होता है। इसका स्वा हुमा " "हुमत " नामक ज्योतिष ग्रन्थ सर्वोपयोगी है।
मंगगजका खगेन्द्र मणिदर्पण' भी सोयोगी रचना सम्राट हरिहरायके समयकी है। यह कवि सुरूलितकवि विगत' •विधुवंशकलाम' मादि विग्दोंसे समलंकृत पाकवि सामने साल भारत सन् १५१० में रखकर कृष्ण और पासपरित्रका व्याख्यान किया था। यह सारसमल्ल नरेशका समावि सात 'कर्णाटक-संजीवन' नामक कोष भी मिकता है, जिसमें से भारम्भ होनेवाले शब्दों का संग्रह है। महविद्रीके क्षत्रिय रखाकर वर्षाने सन् १५.७ में भरतेश्वर चरित', 'अपरामित शतक' भोर 'त्रिकोक शतक' नामक ग्रंथ रचे थे। इस समयके प्रसिद्ध जैनवादी जमिनमावी-विद्यानन्दिका रचा हुमा (सन् १५३३) 'काBAHILY भी बल्लेखनीय रचना है। दक्षिणके प्रसिद्ध अभिनय वैयाकरणों में महाकलदेवकी गणना की जाती है। मोने तक शमानु. शासन' स्वर मा साहित्यको श्रीवृद्धि की की। संस्कृत भाषा
१- ०, पृ २३-11.
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