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विजयनगरकी यायानधर्म। १९९ मानाकये। सन् १९९१ । १२९८ लोन
महापधान' कहे गये हैं। उनके गाधीन मोरे होयसा देशपर शासन mar II इससे स्पष्ट है कि मेर . प्रदेसके एक भाग शासनाधिकारी भी थे।' संमतः दमों मजप एक ही व्यक्ति थे। मङ्गपके भाई गोप्य की संनापति थे। और दोनों ही जैनधर्म के अनुयायी थे।
सेनापति कप और इरुगप्प। मङ्गपके दोनों पुत्र च और गाभी सेनापति थे। भी अपने पिताक समान गधा के स्लम थे। दोनों बायोडा थे। उनमें रूगप्प दण्डाधिपकी प्रसिद्धि बांधकयो। युद्ध क्षेत्र के लिये प्रयास करते थे तो उनकी घाहियों की खोस राजाम आते थे कि गदल बनका भाकाशमें छा जाते थे और सूर्य किरणों को अच्छादित कर देते थे, जिसके कारण भत्रुके कम स्वत: मुंद जाते -शत्रु उनकी भानमान लेते थे। रुगेन्द्रका प्रक उनके भमसे ही व्यक्त हो रहा 4-पुण्यशाको जीबी महामा प्रकाशमें गाने ही प्रगट होती है। रु :प्पके जन्म के सातो उनके मित्रों के मां सम्पतिकी वृद्धि हुई थी और उनकी लिस हासमोठे थे ।
बह र बारों पर बात१-सीमा भा. १९ पृ. ५ व १०, १.१.. २-"वासायी पनिपतरिया घाटीपर घरपोर खुर भारततिभिः । मे मानुरेऽHिIोकम् । बायकोचिजमातीविनाcartm..